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तथा अनुसन्धित्सुओं के लिए यह बहुत ही लाभप्रद सिद्ध होगा, जो भारतीय और भारतीयेतर नीतिशास्त्रों के सन्दर्भ में शोधरत हैं ।
साहित्यिक जगत में विश्रुतकीर्ति, संपादन- कला - निष्णात प्रबुद्ध लेखक श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' ने प्रस्तुत ग्रन्थ का सम्पादन बहुत ही प्रशस्त रूप में किया है । सम्पादक का कार्य और रत्नसंचेता जौहरी का कार्य लगभग एक जैसा होता है । जौहरी रत्नों का सुन्दरतम संचयन करता हुआ उनको एक आकर्षक हार के रूप में परिवर्तित कर देता है, एक सुयोग्य सम्पादक का कार्य भी इसी कोटि का है । वह विचारमय रत्नों को यथावत् आकलित करता हुआ उन्हें जो आकर्षक रूप प्रदान करता है, उससे पाठक रुचिपूर्वक उसके अध्ययन में श्री 'सरस' ने इस ग्रन्थ के सम्पादन में ऐसा ही किया है, उनका सम्पादन / कौशल एवं दीर्घकालीन अनुभव परिदृश्यमान है । मैं उन्हें हृदय से वर्धापित करता हूँ ।
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ग्रन्थ में सर्वत्र
कैवल्यधाम,
सरदारशहर, ( राजस्थान )
आषाढ शुक्ल सप्तमी, विक्रमाब्द २०४५
प्रवृत होते हैं जो स्तुत्य है
उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी लौकिक एषणाओं से अतीत एक उत्कृष्ट अध्यात्मयोगी है । उनके अपने सभी कार्य अध्यात्म प्रेरित हैं । लेखन भी उनकी साधना का एक विशेष अंग है, जो आत्म सम्मानार्जन, भावपरिष्कार तथा आन्तरिक औज्ज्वल्य की निष्पत्ति में सहायक सिद्ध होता है । अतः ग्रन्थ रचना का उनका श्रम तो अपने आपमें सार्थक है ही, वे तो वैसा कर आत्म-श्रेयस की दृष्टि से लाभान्वित हैं ही, यदि जिज्ञासु भाई बहन इस ग्रन्थ का साभिरुचि अध्ययन करेंगे तो निःसन्देह उन्हें सम्यक् दिशाबौध प्राप्त होगा, जिसके अनुसार चलकर मानव अपने जीवन का सार्थक्य साधता है । मुझे आशा है कि वे ऐसा करेंगे ।
- डॉ० छगनलाल शास्त्री
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एम० ए०, ( त्रय) पी-एच० डी०
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काव्यतीर्थं विद्यामहोदधि विजिटिंग प्रोफेसर मद्रास विश्वविद्यालय,
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