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________________ जैन दृष्टि सम्मत - व्यावहारिक नीति के सोपान | २६७ प्राय यह है कि ये सद्गुण नैतिक जीवन की आधारभूमि अथवा भूमिका रूप है । अन्य नैतिक गुण उपरोक्त ३५ गुणों के अतिरिक्त अन्य सद्गृहस्थ के कतिपय अन्य गुण भी बताये हैं । ग्रंथों में नीतिवान विवेकी ये गुण हैं ( १ ) अक्षुद्रता - विशाल हृदयता । - (२) रूपवान – इसका अभिप्राय नीतिशास्त्रीय संदर्भ में शारीरिक स्वस्थता है । क्योंकि जिनका रूप सुन्दर नहीं है, वे भी नैतिक हो सकते हैं और रूपवान व्यक्ति भी अनीतिपूर्ण आचरण कर सकते हैं । (३) सौम्य स्वभाव - स्वभाव की सौम्यता का अभिप्राय है, क्रोध, लोभ आदि आवेग संवेग नियन्त्रित और नियमित हों । (४) लोकप्रियता - समाज तथा परिवार के सभी व्यक्ति उसके सौम्य स्वभाव के कारण उससे स्नेह करते हैं । (५) अक्रूरता - क्रूरता का अभाव । अन्य लोगों को अपनी शक्ति से दबाकर अनुचित लाभ न उठाना । (६) पापभीरु - पापों से डरने वाला । (७) अशता - छल-कपट का व्यवहार न करना । (८) सुदाक्षिण्य - धर्मकार्य में दूसरों की सहायता करना, दाक्षिण्यता का अभिप्राय कुशलता- चतुराई भी है। इसका अभिप्राय यह है कि कुशलतापूर्वक व्यवहार करे । (E) लज्जालु - अकृत्य करने में लज्जा अनुभव करना । (१०) दयालु - प्राणीमात्र पर दया की भावना रखना । (११) मध्यस्थता - माध्यस्थ्य भावना भी है, इसका अभिप्राय यह है कि राग-द्वेष कम करके प्राणीमात्र की कल्याण भावना रखना । (१२) सौम्य दृष्टि - आँखों में सौम्यता का सागर लहराता है । (१३) गुणरागी - सद्गुणों को ग्रहण करना । (१४) सत्कथी - सत्य कहने वाला तथा सत्य का पक्ष ग्रहण करने वाला । (१५) सुदीर्घदर्शी - विचारवान, विवेकी, आगे-पीछे का परिणाम सोचकर कार्य करने वाला । (१६) विशेषज्ञ - अच्छाई-बुराई और आत्मा के हित-अहित को विशेष रूप से गहराई से जानने वाला । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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