________________
१८६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
होता, इसीलिए ऐसी क्रियाएँ जिन्हें नीतिशास्त्र में अनैच्छिक क्रियाएँ (NonVoluntary actions) कहा गया है, नीतिशास्त्र की सीमा में नहीं आतीं।
जैन दर्शन के अनुसार ईपिथिकी क्रिया अरिहन्तों (जीवनमुक्त परमात्मा) को लगती है, इसीलिए वे भी नीति से परे हैं ।
उपसंहार-इस प्रकार नैतिक निर्णयों को मनोवैज्ञानिक, संवेगात्मक, सामाजिक, परिस्थित्यात्मक अनेक तत्व प्रभावित करते हैं; लेकिन इनमें सबसे अधिक प्रभावशाली तत्व हैं-राग-द्वेष, कषाय, संज्ञा आदि। जिनका प्राणीमात्र के जीवन में सतत सद्भाव बना रहता है। इनके बहाव में बह जाने पर निर्णय अनैतिक हो जाते हैं और जो व्यक्ति इन पर नियन्त्रण रखता है, इन्हें नियमित, परिसीमित कर देता है उसके निर्णय नैतिक होते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org