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१७६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
क्रिया, प्रतिक्रिया, अनुक्रिया (action, reaction, response) यह चक्र सतत चलता रहता है ।
समाज के अन्य व्यक्तियों ने किसी एक व्यक्ति के प्रति सद्व्यवहार किया तो उसके मन में उचित प्रतिक्रिया होगी । मानव स्वयं भी नैतिक बनेगा और समाज में भी नैतिकता का प्रसार होगा ।
चोर, डाकू, लुटेरे बनने का एक कारण यह भी है कि समाज इन व्यक्तियों के साथ अनैतिकता का व्यवहार करता है, उनकी उचित बात को भी अनुचित मानकर प्रताड़ित, तिरस्कृत, अपमानित करता है, परिणामतः सीधे सादे व्यक्ति भी समाज से विद्रोह कर बैठते हैं और चोर, डाकू, हत्यारे, अपराधी बन जाते हैं ।
नैतिक निर्णय में इसीलिए समाज के अन्य व्यक्तियों का व्यवहार भी प्रमुख भूमिका अदा करता है ।
वैज्ञानिक प्रभाव
आधुनिक युग विज्ञान का युग है । आज का मानव वैज्ञानिकों द्वारा बात को सत्य मानता है । विज्ञान ने खगोल, भूगोल, आहार, आदि सभी विषयों में विस्मयकारी खोजें की हैं और सप्रमाण इन्हें मानवों के समक्ष रखा है । इसका परिणाम यह हुआ है किं शास्त्र और प्राचीन मान्यताओं से मानव की आस्था डगमगा गई है । नीति सम्बन्धी मान्यताओं में भी बहुत परिवर्तन आ गया है ।
कुछ समय पहले तक किसी दूसरी जाति, वर्ण अथवा देश की कन्या के साथ विवाह सम्बन्ध अनैतिक माना जाता था, किन्तु आजकल इसमें अनैतिकता की तो बात ही क्या, प्रगतिशीलता मानी जाने लगी है । विधवा विवाह आदि के बारे में भी ऐसा ही है ।
गमनागमन, आहार आदि की नैतिक मान्यताओं में भी परिवर्तन आ रहा है।
आचार और व्यवहार के बारे में भी इसी प्रकार की स्थिति है । भौतिक, रसायन और जीवविज्ञान की नई खोजों ने मानव की पुरानी नैतिक मान्यताओं को काफी परिवर्तित कर दिया है ।
इन सभी बातों से नैतिक निर्णय प्रभावित हुए हैं । यद्यपि मानव स्वतन्त्र इच्छाशक्ति का धनी है, वह उसी के आधार पर निर्णय करता है। पर अभिलाषाओं का मूल्यांकन करने के कारण वैज्ञानिक उपलब्धियों से
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