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१७४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
अर्जुन के समक्ष आई थी। उसने मोह-विमुग्ध होकर अस्त्र-शस्त्र रख दिये थे, स्व-कर्तव्य से विरत हो गया था। उस समय श्रीकृष्ण के समझाने से उसके मन-मस्तिष्क से मोह का परदा हटा और वह स्वकर्तव्य पालन के लिए तत्पर हुआ। नैतिक परिस्थिति का लक्षण .. नैतिक परिस्थिति क्या है ? इसको समझने के लिए नीतिशास्त्र मनीषियों ने तीन लक्षण बताये हैं
(१) नैतिक चेतना (Moral Consciousness)-इसका तात्पर्य मानव की बुद्धि और अहं (Intellect and Ego) का जाग्रत रहना है। जटिल परिस्थिति में भी मानव बुद्धि से ही काम लेता है। उसे शुभ-अशुभ और उचित-अनुचित का ज्ञान रहता है। इस ज्ञान को नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से नैतिक चेतना कहा गया है ।
(२) नैतिक संकल्प (Moral Alternatives)-किसी एक समस्या के समाधान के लिए एक से अधिक विकल्पों का, होना। उदाहरणार्थस्वार्थ और परार्थ का विकल्प । नैतिक चेतना इन विकल्पों की ओर संकेत करती है और व्यक्ति इनमें से किसी एक विकल्प को साधन के रूप में चुनता है।
(३) स्वतन्त्र विकल्प (Frce will)—यद्यपि मानव निर्णय करने में स्वतन्त्र होता है किन्तु उसकी स्वतन्त्रता असीमित नहीं होती, इसमें उत्तरदायित्व का तत्व भी जुड़ा होता हैं, उसे लोक स्वतन्त्रता अर्थात् दूसरों की आजादी, सुविधा का भी ध्यान रखना पड़ता है। अतः वह आत्मस्वातन्त्र्य और लोक स्वातन्त्र्य का समन्वय करके ही निर्णय लेता है तभी उसका निर्णय नैतिक बन पाता है ।
नैतिक निर्णय की प्रक्रिया का क्रम इस प्रकार है-नैतिक परिस्थिति ---समस्या का विवेचन-नैतिक विकल्प नैतिक मूल्यांकन-नैतिक संकल्प । इस प्रक्रिया से गुजरते हुए ही मानव नैतिक निर्णय करके उसका कार्यान्वयन कर पाता है। सामाजिक रूढ़ियां
नैतिक निर्णय को सामाजिक रूढ़ियां भी प्रभावित करती हैं । भार-- तीय समाज में मृत्युभोज, जातिप्रथा आदि सैकड़ों रूढ़ियां प्रचलित हैं। कोई व्यक्ति इन रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता, किन्तु किसी सम्बन्धी की मृत्यु
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