________________
नैतिक निर्णय | १६५
प्रभावित और उत्तेजित होती हैं। उदाहरणार्थ-किसी सुन्दर वस्तु को देखकर उसे लेने की मानसिक इच्छा बलवती हो उठती है । यहाँ इच्छा का अस्तित्व मन में पहले से ही था, किन्तु सुन्दर वस्तु की सुन्दरता ने उसे उत्तेजित कर दिया।
इस अपेक्षा से नैतिक चेतना में मन का महत्वपूर्ण स्थान है । व्यवहार के मनोवैज्ञानिक प्रेरणा तत्व
जैसाकि ऊपर बताया जा चुका है, मन ही समस्त इच्छाओं, कामनाओं, वासनाओं आदि का केन्द्र है। इसलिए मन ही मानव के समस्त व्यवहारों का मूल केन्द्र है और उसकी मूलप्रवृत्तियाँ आदि को व्यवहारों का प्रेरक तत्व स्वीकार किया जाता है।
इस विषय पर सभी पौर्वात्य और पाश्चात्य मनीषी एकमत है। इनमें अन्तर है तो भूलप्रवृत्तियों की संख्या और वर्गीकरण के सम्बन्ध में ही है।
फ्रायड काम को ही मूल प्रेरक तत्व मानते हैं, किन्तु अन्य पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक चिन्तकों ने १०० तक मूलप्रवृत्तियाँ स्वीकार की हैं । मैक्डूगल ने इन मूल प्रवृत्तियों का वर्गीकरण १४ भेदों में किया है
(१) पलायन वृत्ति (भय) (२) घृणा (२) जिज्ञासा
(४) आक्रामकता (क्रोध) (५) आत्म गौरव की भावना (६) आत्महीनता की भावना
(मान) (७) वात्सल्य भावना (८) सामूहिकता की भावना । ' (सन्तानोत्पति)
(समूह प्रवृत्ति) (९) संग्रहवृत्ति (लोभ) (१०) रचनात्मकता . (११) भूख (भोजन की गवेषणा) (१२) कामतुष्टि की भावना (१३) शरणागति
(१४) हास्य (मनोरंजन) की
भावना ।। मैक्डूगल ने इन्हें मूलप्रवृत्ति कहा है और बताया है कि मानवीय व्यवहार के ये प्रेरक तत्व हैं।
१.
Mcdougall : Psychology
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org