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नैतिक निर्णय | १६३
इन्हीं पाँचों कारणों से नैतिक निर्णय की प्रक्रिया में बहुत अधिक जटिलता का समावेश हो जाता है । नैतिक निर्णय पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव
नीतिशास्त्र वस्तुतः शुभ का शास्त्र है । वह हमारे समक्ष आदर्श रखता और उस आदर्श को प्राप्त करने की प्रेरणा भी देता है, लेकिन उन आदर्शों को प्राप्त करने के उपाय स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता । इनके लिए मनोविज्ञान की - मानव की प्रवृत्तियों की जानकारी की आवश्यकता है और इसके लिए मनोविज्ञान का अध्ययन आवश्यक है ।
नैतिक शुभ के प्रश्न को लेकर नीतिशास्त्र में दो प्रकार की प्रमुख विचारधाराएँ हैं - ( १ ) सुखवादी और (२) बुद्धिवादी ।
सुखवादियों के अनुसार मानव अनुभूतिप्रधान प्राणी है और बुद्धिवादी का मानव को विशुद्ध बौद्धिक प्राणी मानता है । वह मानव के नैतिक जीवन में अनुभूतियों तथा संवेगों को कोई स्थान ही नहीं देना चाहता, जबकि सुखवादी ह्यूम बुद्धि को वासनाओं (संवेगों) की दासी मानता है ।
सुखवाद और बुद्धिवाद के इस विवाद का समाधान मनोविज्ञान ही कर सकता है । इसलिए नीतिशास्त्र के लिए मनोविज्ञान का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक तो है ही, अनिवार्य भी है ।
इसका कारण यह है कि मनुष्य वासनामय भी है, संवेगमय भी है और बौद्धिक भी है । उसमें ज्ञान, अनुभव, प्रेरणाएँ, संकल्प, अनुभूतियाँ आवेग आदि सभी मूल प्रवृत्तियां हैं ।
अतः नैतिक निर्णय की प्रक्रिया को सही ढंग से समझने के लिए सम्पूर्ण मानव का अध्ययन आवश्यक है; और इस अध्ययन में मनोविज्ञान अपेक्षित सहायता करता है ।
मनोविज्ञान, चूंकि मन का मन की प्रवृत्तियों, विकृतियों, आवेगोंसंवेगों का विज्ञान है, अतः पहले मन के बारे में समझ लें ।
मानव मन
बौद्ध दर्शन मन को चेतन तत्व स्वीकार करता है और गीता' इसे त्रिगुणात्मक प्रकृति से उत्पन्न बताती है ।
1. Reason is and ought to be the slave of passions २. गीता ७१४, १३५
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-Hume
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