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________________ नीतिशास्त्र की प्रणालियों और शैलियाँ | १४३ इसी प्रकार की अन्य शैलीगत विशेषताएँ हो सकती हैं। इन विशेषताओं के आधार पर नीति-कथनों की विभिन्न शैलियाँ प्रवर्तित हुईं। सूक्ति शैली-यह शैली अत्यधिक प्राचीन है । इसमें कम शब्दों में नीति की बात कह दी जाती है। भगवान महावीर के अनेक कथन इसके प्रमाण हैं। आचारांग, सूत्रकृतांग तथा उत्तराध्ययन,दशवैकालिक,आदि प्राचीन आगमों में ऐसी अनेक सूक्तियाँ मिलती हैं । 'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि"-जैसे सूक्ति वाक्य पाप तथा अनैतिक कर्मों से मानव को विरत करने के लिए काफी प्रभावशाली हैं। उपमानों से पुष्ट शैली-उपमानों से पुष्ट सूक्ति वचन जैन भाष्य साहित्य में काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। व्यवहारभाष्य पीठिका की एक ही गाथा इस संदर्भ में यथेष्ट होगी जा एगदेसे अदढ़ा उ मडी, सीलप्पए सा उ करेइ कज्जं । जा दुब्बला संठविया वि संति, न तं तु सीलंति विसण्णदारु॥ - व्यवहारभाष्य पीठिका, गाथा १८१ (गाड़ी का कुछ भाग टूटने पर तो उसे फिर सुधारकर काम में लिया जा सकता है,किन्तु जो ठीक करने पर भी बार-बार टूटती जाय और बेकार बनी रहे, ऐसी दुर्बल गाड़ी को कौन सँवारे ? अर्थात् उसे सँवारने से क्या लाभ ?) __ असफल प्रयत्न से विरत करने की यह सक्ति गाड़ी के सटीक उपमान से कितनी प्रभावशाली बन गई है। सूक्ति शैली वेदों और उपनिषदों में मिलती है और फिर महाभारत जैसे महाकाव्य में श्लोकों द्वारा नीति शिक्षा दी गई है । इस प्रकार श्लोक शैली प्रचलित हुई। श्लोक शैली में बृहस्पतिनीति, शुक्रनीति आदि अनेक नीतिग्रन्थों की रचना हुई । यह श्लोक शैली लोकप्रिय भी हुई किन्तु सूत्रशैली की अपेक्षा कम लोकप्रिय हुई। श्लोक-शैली में ही भर्तृहरि का प्रसिद्ध नीति शतक लिखा गया। इसमें सभी श्लोक नीतिपरक हैं । एक श्लोक काफी होगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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