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आपका पाणि-ग्रहण श्रीमान् पुखराज जी कोठारी के सुपुत्र जसराज जी कोठारी के साथ सम्पन्न हुआ। आपके ५ पुत्र हुए श्रीमान् शान्तिलाल जी, श्रीमान् चम्पालाल जी, श्रीमान सम्पत लालजी, श्रीमान मदनलालजी और श्रीमान् अजयकुमार जी। और तीन सूपूत्रियां हैं-श्रीमती प्रेमलता बाई, श्रीमती पवनबाई, ,श्रीमती सुशीलाबाई। पुत्र और पुत्रियों में आपने जो धार्मिक संस्कारों के बीज वपन किये, वे पल्लवित एवं पुष्पित हैं । आप का सम्पूर्ण परिवार धर्म के प्रति अनुरक्त है। ..
श्रीमती वीलम बहिन अपने जीवन के ऊषा काल में अनेक विघ्नबाधाओं से जूझती रहीं, किन्तु उनका धैर्य कभी ध्वस्त नहीं हआ। उनका मन्तव्य था कि गुलाब के फूल तो कांटों के बीच ही खिलते हैं-महकते हैं और अपनी मधुर सौरभ लुटाते हैं। हमें भी गुलाब की तरह खिलकर जीवन सौरभ लुटानी है । वे सदा श्रमण और श्रमणियों की सेवा में तत्पर रहीं और अतिथि-सेवा करने में भी उन्होंने कभी पीछे कदम नहीं रखा। जीवन भर धर्म-साधना करती रहीं, सेवा भक्ति करती रहीं और पोषवदी आठम दि० ४ जनवरी १९८६ को आप भौतिक शरीर छोड़कर स्वर्गस्थ हुईं।
परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी. और उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. के प्रति उनकी हार्दिक श्रद्धा थी; भक्ति थी। उनकी पावन पुण्य स्मृति में उनके सुपुत्र अजयकुमार जो कोठारी ने प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में श्रद्धापूर्ण अनुदान प्रदान किया है।
___ अजय कोठारी एक युवक है, विचारक हैं, चिन्तक हैं, साहित्य के प्रति उनकी सहज रुचि है । समाज को ऐसे तेजस्वी युवक पर गर्व है, नाज है। आपका व्यवसाय मद्रास में है । हम आपके उज्जवल भविष्य की मंगल कामना करते हैं कि आपका आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक सभी दृष्टियों से समुत्कर्ष हो ।
-चुन्नीलाल धर्मावत कोषाध्यक्ष; श्री तारकगुरु जैन ग्रन्थालय
उदयपुर
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