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________________ ७२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन । इनमें से नीतिशास्त्र विधायक विज्ञान तो हो नहीं सकता क्योंकि इसके प्रयोगों के लिए यांत्रिक प्रयोगशाला (Instrumental laboratory) नहीं होती। प्रयोग का विषय (subject) भी निर्जीव नहीं होता; जिस पर मनमाने प्रयोग किये जा सकें। इसका विषय तो प्रबुद्ध चेतनाशील मानव है। उसके क्रिया-कलापों का अंकन करके केवल परिणाम निकाले जा सकते हैं, अथवा उसे आदर्श की प्रेरणा दी जा सकती है। इसीलिये अन्य सामाजिक विज्ञानों के समान (यथा-समाज विज्ञान Social Science राजनीतिक विज्ञान Political Science आदि) यह एक नियामक अथवा आदर्शमूलक विज्ञान ही माना गया। इसी रूप में नीतिशास्त्र को विज्ञान माना जा सकता है और माना जा रहा है। Ethics शब्द की व्युत्पत्ति अंग्रेजो में नीतिशास्त्र को Ethics कहा जाता है। Ethics शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द Ethos से हुई है। Ethos का शाब्दिक अर्थ है चरित्र (Character)। इस प्रकार नीतिशास्त्र को मनुष्यों के चरित्र का शास्त्र कहा जा सकता है। और यह भी सत्य है कि मनुष्य का चरित्र, उसके आचार, व्यवहार तथा आदतों का पुंज है । अतः नीतिशास्त्र को मनुष्यों के आचार, व्यवहार और आदतों का अध्ययन करने वाला विज्ञान कहा जा सकता है। नीतिशास्त्र के लिए अंग्रेजी में दूसरा शब्द है Moral Philosophy. इसमें मॉरल (Moral) शब्द की व्युत्पत्ति लेटिन शब्द Mores से हुई है। Mores का प्रमुख अर्थ रीति-रिवाज, अभ्यास और आदत है तथा चरित्र इसका गौण अर्थ है । अतः पाश्चात्य विद्वानों के चिन्तन के अनुसार नीतिशास्त्र को मानव के चरित्र, आचार, व्यवहार, आदतों और समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों के पालन आदि का अध्ययन करने वाला विज्ञान कहा जा सकता है। चूंकि समाज में प्रचलित रीति-रिवाज मनुष्य के चरित्र को ढालने में प्रमुख कार्य करते हैं, अतः वहाँ का नीतिशास्त्र समाजपरक हो गया। 1 The term 'moral', closely associated with ethics, comes from the latin word 'mores', which primarily stands for 'custoni' or 'habit' and secondarily means 'character'. -Muirhead, John H. Quoted by, Dayanand Bhargava : Jaina Ethics, p. 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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