SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन की-आध्यात्मिक, मानसिक, चारित्रिक, सामाजिक आदि-उन्नति में सहयोगपूर्ण वातावरण बनाना ही नीति तथा नतिकता है और इस उन्नति में उपयुक्त सिद्धान्तों का प्ररूपण ही नीतिशास्त्र है । ... क्योंकि भारत में नीति और धर्म का अविभाज्य सम्बन्ध रहा है, अतः यहाँ नीति का मुख्य कार्य व्यक्ति का-समाज का चारित्रिक सुधार है। पाश्चात्य चिन्तन ... किन्तु पश्चिम की विचारधारा में आध्यात्मिक पुट नहीं रहा। वहाँ नीति केवल समाजपरक ही रही। वहाँ नीतिशास्त्र की परिभाषाएँ तथा नीतिशास्त्रकारों के विचार बाह्य परिस्थितियों पर आधारित रहे। उनका मनोवैज्ञानिक, भौतिक दृष्टिकोण ही प्रमुख रहा। समाज की सुव्यवस्था तथा भौतिक उन्नति ही वहां एक मात्र लक्ष्य रहा । आधुनिक पाश्चात्य चिन्तकों ने नीतिशास्त्र का कला और विज्ञान इन आधारों के रूप में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया है। - विज्ञान के भी वहां तीन प्रमुख भेद किये गये हैं--(१) नियामक विज्ञान (Normative Science) और (२) विधायक अथवा प्राकृतिक विज्ञान (Positive or Natural Science) और (३) व्यावहारिक विज्ञान (Practical Science) . भारतीय चिन्तन में जिसे शास्त्र कहा गया है, उसमें विज्ञान भी गर्भित है, क्योंकि विज्ञान का शाब्दिक अर्थ विशेष ज्ञान होता है। जैसेभारत में आयुर्वेद को शास्त्र कहा गया; किन्तु पश्चिमी विद्वानों ने इसका नाम चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) दिया। इसी तरह जो ज्ञान भारत में ज्योतिष शास्त्र कहलाया उसे ही पश्चिमी विद्वानों ने अंतरिक्ष विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान आदि नाम दिये। जबकि ज्योतिष शास्त्र में भी खगोल विद्या, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र की गति, उदय-अस्त, ग्रहण आदि का अध्ययन होता है और वही अध्ययन अन्तरिक्ष विज्ञान में भी किया जाता है। ... यह भी यहां समझना भूल होगा कि भारत ने भौतिक, गणित आदि के क्षेत्र में विशेष रुचि नहीं ली, अतः यहाँ विज्ञान (भौतिक विज्ञानों के सन्दर्भ में) का विशेष विकास नहीं हुआ। भगवती सूत्र में पुद्गल परमाणु, १. विशिष्य अनेन ज्ञानं, इति विज्ञानम् । -अमर कोष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy