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६६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
नीति का भाववाचक अर्थ है - ' वे रीति-रिवाज और नियम, जो समाज द्वारा स्वीकृत हों और जिन पर चलने से व्यक्ति और समाज का सर्वाङ्ग एवं सनातन कल्याण साधन हो । 'नीतिशास्त्र' में दूसरा शब्द है 'शास्त्र' । शास्त्र वह है जिससे शिक्षा दी जाती हो,' अथवा जो अज्ञान से रक्षा करता हो अर्थात् कर्तव्य की शिक्षा देने वाला तथा अज्ञान के कारण दुर्दशा में गिरने से बचाने वाला परम सहायक तत्व शास्त्र है ।
शास्त्र का एक अर्थ अनुशासनकर्ता भी है जो व्यक्ति की इच्छाओं पर, भावनाओं पर शासन / नियन्त्रण करता है अथवा जिससे नियन्त्रण होता है, वह शास्त्र है ।
इस प्रकार शास्त्र शब्द के तीन अर्थ प्रतिफलित होते हैं - ( १ ) शिक्षा देने वाला, (२) रक्षा करने वाला और (३) अनुशासन करने वाला । नीतिशास्त्र की आदर्श परिभाषा
अतः जो ग्रन्थ नीति की, न्याय की शिक्षा देता है, अन्याय से रक्षा करता है, व्यक्ति की आत्म-विरोधी परिवार विरोधी, जाति-समाज-राष्ट्रविरोधी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण अथवा अनुशासन रखता है; सभी प्रकार के विरोधों का शमन करता है, लोक व्यवहार को सही - उचित ढंग चलाने में सहायक होता है, मानव की उन्नति का पथ आलोकित करता है, वह है नीतिशास्त्र |
नीतिशास्त्र की यह आदर्श युक्त और सार्वभौम परिभाषा हैनीतिविरोधध्वंसी, लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् ।
अर्थात् -- परस्पर के सभी प्रकार के अन्तर् और बहिर् विरोधों का शमन करना तथा लोक व्यवहार को सही ढंग से चलाना, नीति है ।
यही बात प्रसिद्ध यूनानी विचारक प्लेटो (Plato) ने भी कही हैMorality is the effective harmony of whole. 5
- सभी में प्रभावशाली समन्वय नैतिकता है ।
१ डा० रामनाथ शर्मा : भारतीय नीतिशास्त्र, पृ० ४
२ शिष्यते, शिक्ष्यते अनेन इति शास्त्रम् । - अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग ७, पृ० ३३२ ३ शास्ति च त्रायते चेति शास्त्रम् । - न्याय कोष, पृ० ८७ / ८५
४ सासिज्ज तेण तहिं व नेयमायावतो सत्थं । — विशेषावश्यकभाष्य, १३८४ ५ Quoted by, Will Durant : Story of Philosophy, p. 40
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