________________
६४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
सामान्यतया, सभी धर्मों ने धर्म तत्व को जानने के लिए मानव को बुद्धि प्रयोग की आज्ञा नहीं दी । यही कहा कि जो धर्म-प्रवर्तकों ने कहा है, हमारे शास्त्रों में लिखा है, उसी पर विश्वास कर लो । किन्तु भगवान महावीर मानव को अन्धविश्वासी नहीं बनाना चाहते थे, मानव स्वतन्त्रता के पक्षधर थे अतः 'पन्ना समक्खिर धम्मं' कहकर मानव को धर्म तत्व में जिज्ञासा और बुद्धि प्रयोग को अवकाश देकर उसके नैतिक धरातल को ऊँचा उठाया । आत्महित के साथ-साथ लोकहित का भी उपदेश दिया ।
तत्कालीन एकांगी विचारधाराओं का समन्वय अनेकांतवाद का सिद्धान्त देकर किया । सामाजिक, धार्मिक दृष्टि से रसातल में जाते हुए नैतिक मूल्यों की ठोस आधार पर प्रतिष्ठा को ।
इस प्रकार भगवान महावीर ने नीति के ऐसे दिशा निर्देशक सूत्र दिये, जिनका स्थायी प्रभाव हुआ और समस्त नैतिक चिन्तन पर उनका प्रभाव आज भी स्पष्ट परिलक्षित होता है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org