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________________ कि वह 'नैतिक चाहिए' के अनुसार कार्य कर सकता है । वह स्वतन्त्र है, अपने चरित्र को विकसित कर सकता है, नये अभ्यासों की नींव डाल सकता है; पर यह भी सच है कि प्रत्येक व्यक्ति की सम्भावनाएँ सीमित हैं। वह अपनी मानसिक, शारीरिक और भौतिक प्रकृति पर निर्भर है। इस निर्भरता के साथ ही वह प्रात्म-चेतन प्राणी भी है। वह अपने ध्येय को समझता है। अपने को बाह्य-बन्धनों से मुक्त कर सकता है। उनके प्रतिकूल कर्म कर सकता है। अपने कर्मों के स्वरूप को स्वयं निर्धारित कर सकता है और अपना उन्नयन कर सकता है। यह सभी मानेंगे कि व्यक्ति का वर्तमान चरित्र विभिन्न शक्तियों का परिणाम है। किन्तु व्यक्ति की आकांक्षाएं और सम्भावनाएँ भविष्य की मोर इंगित कर उसे बताती हैं कि इस 'परिणाम' से ऊपर उठने की उसमें शक्ति और सामर्थ्य है। इस अर्थ में उसके कर्म प्रात्म-निर्णीत हैं। वह समझबूझकर कर्म कर सकता है। अपनी वास्तविक प्रात्मा के प्रादेश एवं प्रान्तरिक प्रादेश को मान सकता है। यही संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता है। कर्तव्य तथा नैतिक मान्यताएँ आदि की धारणाएं इसी स्वतन्त्रता की सूचक हैं। इन धारगानों का उसके जीवन से चेतन-सम्बन्ध है। वह परिस्थिति-विशेष में अपनी सामर्थ्य के अनुकूल जिस नियम को सर्वश्रेष्ठ समझता है, उसे कर सकता है। यही उसका नैतिक कर्तव्य है । कर्तव्य का आदेश उसे अनुचित मार्ग की ओर झुकने से बचाता है । उसे बताता है कि उसे अपनी स्वतन्त्र संकल्प-शक्तियों के द्वारा निम्न-प्रवलियों, कुण्ठित-सम्भावनामों का उच्चतम ध्येय से लिए उन्नयन करना चाहिए। उसकी संकल्प-शक्ति उसकी बौद्धिक और भावुक प्रकृति को संगतिपूर्ण एकत्व में बांध सकती है। उसे संस्कृति के उच्चतम शिखर की ओर ले जा सकती है। मनुष्य दृढ़-सकल्प द्वारा भविष्य के आचरण को सुधारने का प्रयास कर सकता है। संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता के कारण ही वह दुनिवार बुरे अभ्यासों को त्यागने में सफल होता है । प्रारम्भ में उसे बुरे अभ्यासों को छोड़ने में कठिनाई होती है, किन्तु धीरे-धीरे वह उन पर विजयी हो जाता है। आत्मोन्नति के लिए संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता आवश्यक मान्यता है । जहाँ तक व्यक्ति के शुभ-अभ्यासों का प्रश्न है, उसकी संकल्प-शक्ति नियतिवाद, स्थिरता, दृढ़ता, संकल्प और संस्कृति की द्योतक है। यहाँ पर यह न भूलना चाहिए कि यह नियतिवाद प्राकृतिक नियतिवाद से भिन्न है। इसमें आत्मोन्नति के लिए विस्तृत क्षेत्र है । नैतिक नियतिवाद में संकल्प-शक्ति स्वतन्त्र है । उसकी पूर्ण स्वतन्त्रता इस पर निर्भर है कि वह अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण रूप से १६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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