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________________ में संकल्प शक्ति कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे प्रात्मा अधिकृत किये हो और न यह वह प्रज्ञात शक्ति है जिसका श्रात्मा से भिन्न अस्तित्व हो । संकल्प- शक्ति वह आत्मा है जो ज्ञात रूप से इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रयास करती है । जब इच्छाओं में द्वन्द्व होता है तो द्वन्द्वों द्वारा श्रात्मा अपने ही विभिन्न स्तर को अभिव्यक्ति देती है । इच्छाएँ सदैव विषयमूलक होती हैं और इन विषयों का उस श्रात्मा से सम्बन्ध होता है जिसके लिए कि ये उपयोगी होती हैं। अत: इच्छाएँ सदैव आत्मा के चरित्र को प्रतिबिम्बित करती हैं । इच्छाएँ केवल उन विवेकहीन शक्तियों या प्रवृत्तियों की भाँति नहीं हैं जो व्यक्ति को इधर-उधर नचाती रहें। इच्छाओं का सम्बन्ध किसी ज्ञात विषय से है और इसी विषय की प्राप्ति के लिए आत्मा संकल्प शक्ति के रूप में ज्ञात रूप से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं । निर्णीत कर्म में इच्छाओंों की सन्तुष्टि द्वारा श्रात्मा स्वयं को सन्तुष्ट करती है । - एकांगी दृष्टिकोणों का परिणाम : नैतिकता अर्थशून्य – नियतिवादी एक वैज्ञानिक की भाँति मनुष्य के सम्यक् व्यक्तित्व को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास करते हैं । उनके अनुसार व्यक्ति अपने समय और परिस्थिति का शिशु है । यह उनके सम्मुख शक्त है । उसका जीवन निम्न प्राणियों की भाँति क्रिया-प्रतिक्रया का जीवन है । उसका चरित्र भौतिक और मानसिक शक्तियों का योग है । उसके कर्म उसके चरित्र के अनिवार्य परिणाम हैं । उसकी संकल्प - शक्ति पूर्वनिर्धारित है । यदि व्यक्ति के कर्म पूर्वशक्तियों के अनिवार्य परिणाम हैं तो व्यक्ति को उसके कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते; क्योंकि उसके कर्मों की गति यान्त्रिक है । उसके प्राचरण पर निर्णय देना उतना ही अर्थशून्य है जितना कि हवा से उड़ते हुए पत्ते पर देना है । जिस प्रकार विजली के बटन को दबाने से बिजली की बत्ती जल जाती है, उसी प्रकार एक विशिष्ट परिस्थिति में व्यक्ति विशिष्ट रूप से कर्म करता है । व्यक्ति के पूर्वनिर्धारित स्वरूप अथवा कारण के अनुरूप कर्म करनेवाली कार्यरत संकल्प-शक्ति नैतिक निर्णय का विषय नहीं हो सकती और न ऐसे कर्त्ता के सम्मुख कर्तव्य, पश्चात्ताप आदि नैतिक मान्यताओं का ही कुछ मूल्य है । नियतिवादियों की प्रमुख भूल यह है कि उन्होंने व्यक्ति के चरित्र को वैज्ञानिक परिभाषा में बाँधना चाहा। उसके आचरण का कार्य-कारण के नियम के द्वारा स्पष्टीकरण करने का प्रयास किया । सभी प्रबुद्ध विचारक यह मानते हैं कि मनुष्य की कर्म शक्ति का क्षेत्र अन्य घटनाओं की भाँति पूर्व घटनानों पर प्राधारित नहीं है । व्यक्ति के कर्म श्रात्म २ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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