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________________ कहते हैं जिन्हें कर्ता स्वतन्त्र रूप से करता है । संकल्प की स्वतन्त्रता के कारण ही व्यक्ति अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी है। आत्मा की अमरता-आत्मा की अमरता को स्वीकार करना नैतिकता के लिए अनिवार्य है । बिना आत्मा की अमरता को माने हमारा दृष्टिकोण स्थूल जड़वादी हो जायेगा। यह उस असंस्कृत चार्वाक विचारधारा या भोगवादी विचारधारा स्थूल सुखवाद को प्रश्रय दे सकता है जो व्यक्ति को उसके सामाजिक नैतिक आध्यात्मिक कर्तव्य से मुक्त कर देता है, उसके जीवन को पशु जीवन का पर्यायवाची बना देता है। आत्मा की अमरता को मानने पर ही हम कह सकते हैं कि जिस नैतिक आदर्श को प्राप्त करने का मनुष्य प्रयास कर रहा है, वह यदि इस जीवन में उसे नहीं मिल पाया, उसे वह कालान्तर में अवश्य प्राप्त कर लेगा। - ईश्वर का अस्तित्व-सर्वशक्तिमान चेतन स्रष्टा में एकान्तिक विश्वास नैतिक जीवन के लिए आवश्यक है। ईश्वर नैतिक आदर्श का प्रतीक है। वह हमारे कर्मों का द्रष्टा और निरपेक्ष निर्णायक है। ईश्वर पर विश्वास हमें वह आशा दिलाता है कि सद्गुण आनन्ददायक है। ८६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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