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________________ व्यक्ति विशिष्ट परिवार, समाज, देश, जाति और राष्ट्र का अंग है। उसके स्वरूप की अपनी विशेषताएं हैं। अपने परिवार और परिवेश को, प्रवृत्तियों को वह दायरूप में प्राप्त किये रहता है । वह एक विशिष्ट परिस्थिति में अपने को निर्धारित पाता है और उसी स्थिति के जीवन के सामान्य विधान में वह सहयोग देता है । इस विधान के लिए सक्रिय कर्म करना ही उसका प्रमुख कर्तव्य हो जाता है । अतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने स्वधर्म को समझकर कर्म करे । जो व्यक्ति जिस कर्म के योग्य हो उसे ही श्रेष्ठ समझकर भली-भाँति करे । अपने क्षेत्र के अन्दर आचरण के नियमों का पालन करना प्रत्येक का धर्म है । वास्तव में कर्तव्य की समस्या चरित्र और ध्येय की समस्या है। बौद्धिक प्राणी के लिए यह जानना अनिवार्य नहीं है कि नियम क्या हैं क्योंकि नियम का अनुवर्तन मात्र करना यन्त्रवत् रहना है। मनुष्य के लिए चरित्र के उस आदर्श को समझना आवश्यक है जिसका कि वह अपने अन्दर विकास करना चाहता है । एक सुविकसित चरित्र को चाहे किसी भी विशिष्ट परिस्थिति में रख दें उसे अपने आचरण के मार्ग को खोजने में देर नहीं लगेगी । ऐसे व्यक्ति को नियमों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं । उसका ध्येय निर्दिष्ट है । वह स्वयं मार्ग खोज सकता है । यदि व्यक्ति में शुभ की प्राप्ति के लिए आन्तरिक प्रेरणा और तीव्र जिज्ञासा हो तो उसका कर्म अपने आप ही सुनिर्देशित हो जाता है, किन्तु यदि वह ध्येय के प्रति उदासीन हो अथवा उसका नैतिक ज्ञान कुण्ठित हो तो प्राथमिक स्थिति में नियम सहायक सिद्ध होंगे । यहाँ पर नीतिज्ञ का कर्तव्य हो जाता है कि मानव जीवन के सामान्य स्वभाव के आधार पर आचरण के कुछ नियमों का प्रतिपादन करे और उन स्थितियों को समझाये जिनके लिए वे उपयोगी सिद्ध होंगे । यहाँ पर यह ध्यान में रखना आवश्यक है. कि नियम को पूर्ण महत्त्व देनेवाले लोग भूल करते हैं । पहले तो जीवन की अनन्त आवश्यकताओं को लिपिबद्ध नहीं किया जा सकता और दूसरा जीवन नियममात्र नहीं है | अतः नीतिज्ञ केवल ध्येय के स्वरूप को हमारे सम्मुख रख सकता है । प्रत्येक व्यक्ति का काम है कि मूर्त स्थिति को समझकर अपना मार्ग निर्धारित करे । यही कर्तव्य का मार्ग है । कर्तव्य और सद्गुण-दुर्गुण – स्वतन्त्र संकल्पवाले आत्म-प्रबुद्ध प्राणी का कर्तव्य है कि वह उस कर्म को करे जो शुभ है, अर्थात् शुभ-कर्म करना कर्तव्य है और अशुभ कर्म करना अकर्तव्य है । जब व्यक्ति को कर्तव्य करने का ८० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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