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अनुक्रमणिका
प्रथम भाग
सामान्य परिचय
अध्याय १: नैतिक समस्या
१८-३१ विषय-प्रवेश : नीतिशास्त्र की उत्पत्ति : शब्द-विज्ञान के अनुसार नीतिशास्त्र की परिभाषा : मूलगत नैतिक प्रत्यय ; उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ का स्पष्टीकरण : परम शुभ का अभिप्राय : परम शुभ का स्वरूप : नीतिशास्त्र का विषय और क्षेत्र : नीतिशास्त्र की उपयोगिता-उसके पक्ष का समर्थन तथा उसके विरुद्ध अपवादों का खण्डन : वह निर्माणात्मक है : नीतिशास्त्र के दो रूपनिर्माणात्मक तथा आलोचनात्मक : उसका ध्येय वैयक्तिक नहीं
सर्वकल्याणकारी है : विवेकसम्मत धर्म : वास्तविक और उपयोगी। अध्याय २ : नीतिशास्त्र और विज्ञान
३२-४३ विज्ञान का अर्थ : विज्ञान के दो वर्ग : नीतिशास्त्र एवं नीतिविज्ञान : नीतिशास्त्र और यथार्थ-विज्ञान में स्पष्ट भेद : तत्त्वदर्शन से सामीप्य : नैतिक अभिधारणाएँ-संकल्प-स्वातन्त्र्य, प्रात्मा की अमरता, ईश्वर का अस्तित्व : आचरण कला की सम्भावना : व्यावहारिक दर्शन : सिद्धान्त और व्यवहार का ऐक्य । ।
अध्याय ३ : नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ
४४-५० नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ : दार्शनिक और वैज्ञानिक विधि में भेद :
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