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________________ करना, उनकी सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझना चाहिए क्योंकि उन्हीं के पास गरीबों की धरोहर है ।' उनका विश्वास था कि नैतिक चेतना के विकास द्वारा ही सुदृढ़ रामराज्य (मानव-प्रेम और आत्मिक एकता के समाजवाद) की स्थापना हो सकती है। प्रात्मत्याग, प्रात्मोन्नति और वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धान्त को आत्मसात करने की आवश्यकता है। यही वास्तविक समाजवाद को स्थापित कर सकेगा। इसके विपरीत अाधुनिक साम्यवादी तथा समाजवादी, जिन्होंने अपनी प्रेरणा पश्चिम से पायी है, अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए हिंसात्मक साधन को आवश्यक समझते हैं। वे वर्तमान आर्थिक व्यवस्था को वर्गयुद्ध तथा रक्तक्रान्ति द्वारा बदलना चाहते हैं। उनके अनुसार समानता (आर्थिक) अमीरों को मिटाने से ही सम्भव है। सम्पत्तिवानों तथा शोषकों का हृदय-परिवर्तन आर्थिक व्यवस्था के परिवर्तन द्वारा ही हो सकता है । अथवा व्यक्तियों में नैतिक चेतना की जागति, मानवीय भावना की उत्पत्ति के लिए यह आवश्यक है कि सर्वहारा में क्रान्ति की भावना उत्पन्न की जाय। प्रार्थिक व्यवस्था में परिवर्तन तथा क्रान्ति का आतंक ही वर्ग-चेतना से पीड़ित समाज का हृदय बदल सकता है । समाजवाद व्यक्तिगत सम्पत्ति में विश्वास नहीं करता है । पूंजीपतियों को अस्तित्वरहित करना ही इसका सर्वोपरि ध्येयहै । समाजवादियों के अनुसार सम्पूर्ण-चल और अचल सम्पत्ति-स्वामी लोक राष्ट्र है । मनुष्य का परिवार तथा बच्चे सब कुछ लोकराष्ट्र के हैं । मनुष्य राष्ट्र का अंग मात्र है । उसकी व्यक्तिगत सत्ता नहीं के बराबर है । गांधीवाद समाजवाद के साधनों को हिंसात्मक समझता है । उसके अनुसार पूंजीपतियों की सम्पत्ति के छीने जाने का विचार हिंस्र पशु-प्रवृत्ति का सूचक है । रक्त-क्रान्ति की पुकार अमानुषीय और अनैतिक है । व्यक्तिगत सम्पत्ति रखना, निर्धनों के धन का संरक्षक बनना अनुचित नहीं है । अपने स्वार्थ के लिए धन-संचय (परिग्रह) करना पाप है । स्वेच्छापूर्वक प्रात्मत्याग करना, अपने ऊपर पाव १. तुलना कीजिए 'Temporal goods which are given to men by God are his as regards their possession but as regards their use, if they should be superfluous to him, they belong to others who may profit by them'—Thomas Aquinas. (१२२५-१२७४) गांधीजी | ३५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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