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आदर्श के मापदण्ड से है, तथ्यात्मक जगत एवं वस्तुविशेष से इनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है ।
नीतिशास्त्र एवं नीतिविज्ञान - विज्ञान सूक्ष्म निरीक्षण, विश्लेषण, वर्गीकरण, अनुमान और प्रयोग द्वारा वस्तुनों का व्यापक ज्ञान प्राप्त करता है और तदनुसार सामान्य नियमों का प्रतिपादन करता है । वह सामान्य नियमों के आधार पर घटनाओं और वस्तुनों की व्याख्या तथा स्पष्टीकरण करता है । विज्ञान के अनुसार किन्हीं विशेष कारणों से किन्हीं विशेष घटनाओं का जन्म अवश्य होता है । उसकी दृष्टि में विश्व में सभी वस्तुएँ और घटनाएँ कार्य-कारणभाव से परस्पर सम्बद्ध तथा अवलम्बित हैं । किसी वस्तु के बारे में पूर्ण रूप से तभी समझा जा सकता है जब कि उसके परिवेश से सम्बन्ध रखनेवाले अन्योन्याश्रित भाव अथवा परिस्थितियों से सम्बद्ध कार्य-कारण-भाव को पूर्णतया ग्रहण कर लिया जाय । तब यह स्पष्ट हो जाता है कि अमुक घटनाओं या कारणों के क्रम से अमुक वस्तु संगठित होती है । अपने व्यापक अर्थ में विज्ञान वह बौद्धिक प्रणाली है जिसके द्वारा बाह्य जगत का व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त होता है । इस अर्थ में नीतिशास्त्र को चरित्र और आचरण का विज्ञान अथवा नीतिविज्ञान कह सकते हैं । नीतिशास्त्र परमशुभ को समझने का एक क्रमबद्ध प्रयास है । वह वैज्ञानिक दृष्टि - बिन्दु से वैयक्तिक, राष्ट्रीय अभ्यासों, सामाजिक, धार्मिक नियमों तथा चारित्रिक नैतिक सिद्धान्तों का निरीक्षण और विश्लेषण द्वारा अध्ययन करता है । वह नैतिक नियमों को समसामयिक परिस्थितियों अथवा देशकाल की आवश्यकता के आधार पर समझाता है । नीतिशास्त्र नैतिक नियमों के सापेक्ष महत्त्व को स्वीकार करता है । वह नैतिक नियमों को, समयविशेष के सामाजिक ऐक्य का अनिवार्य परिणाम मानता है । विज्ञान की भाँति वह नैतिक नियमों को अपने अस्तित्व के लिए परिस्थिति और परिवेश पर अन्योन्याश्रित भाव से अवलम्बित मानता है । विशिष्ट कारणों से ही नैतिक नियमों का प्रादुर्भाव होता है । अतः उन्हें सामाजिक परिस्थितियों से विच्छिन्न एक-दूसरे से असम्बद्ध सत्य के रूप में नहीं देखा जा सकता । वास्तव में उनका मानव समाज के संगठन से सजीव सम्बन्ध होता है और इस सम्बन्ध के कारण ही वह परस्पर सम्बद्ध हैं ।
नीतिशास्त्र और यथार्थ विज्ञान में स्पष्ट भेद नीतिशास्त्र को विज्ञान की परिभाषा द्वारा वहीं तक सीमित कर सकते हैं जहाँ तक कि दोनों वैज्ञानिक प्रणाली का आश्रय लेकर अपने निर्णयों को सत्य अथवा यथार्थ की कसौटी पर
३४ / नीतिशास्त्र
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