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कर देता है । उसके एक आलोचक' के शब्दों में 'नीत्से ने कहा कि मैं संस्कृति का समर्थक हूँ किन्तु इसके विपरीत उसने संस्कृति का सर्वनाश किया । जिस प्रकार उसके व्यक्तिगत जीवन का अन्त पागलपन में हुआ, उसी प्रकार उसके दर्शन की अन्तिम परिणति भी एक विरोधाभास में हुई । क्योंकि संस्कृति का दर्शन होते हुए भी उसके भीतर संस्कृति के विरोधी बीज वर्तमान हैं ।"
1. F. Nietzsche by Frederick Copleston
३२२ / नीतिशास्त्र
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