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________________ प्रस्फुटित नहीं होती। केवल अतिमानव में ही वह पूर्ण रूप से प्रस्फुटित होती है। अतः वह पुरुषत्वप्रधान व्यक्ति है। नीत्से ने अपने अतिमानव के सिद्धान्त द्वारा पौरुषीय गणों को प्रधानता दी। पुरुषत्व क्षत्रियों और पार्यों का भी धर्म है। प्रश्न यह उठता है कि नीत्से ने पुरुषत्व के क्या अर्थ लिये । वीरता, कठोरता, स्वार्थता, शक्तिप्रेम, युद्धप्रेम, तानाशाही, विलासिता, अहन्ता, सत्य और न्याय को अपने स्वभावानुसार समझना, अपने को ही सृष्टिकर्ता समझकर मनमानी करना, यही अर्थ नीत्से पौरुषीय गुण को देता है। उसकी दृष्टि में शुभ, परमार्थता, समानता, आत्मत्याग, अहिंसा, सत्य के शाश्वत रूप को मानना, जनतन्त्रवाद में विश्वास करना कायरता और अनैतिकता है। नीत्से का अतिमानव स्वतन्त्र व्यक्तित्व का, स्वार्थी, मर्यादाहीन तथा उच्छृखल व्यक्ति है । वह मनुष्यत्व तथा मानवीय भावना से शून्य, प्रभुत्वशक्ति का स्फुल्लिग है । अपने को प्रसन्न करने के लिए, अपनी दानवता को तुष्ट करने के लिए वह मानव को पशु से भी गयाबीता समझता है। असमानता अनैतिक है-नीत्से की नैतिकता अपने मूल रूप में अनैतिक है। वह शुभ कर्म उसे कहता है जो प्रभत्वप्राप्ति की महदाकांक्षा की अभिवद्धि तथा सुख की भावनाशक्ति की अभिलाषा की तप्ति करता है। नैतिक प्रत्ययों के चिरन्तन और शाश्वत रूप को वह स्वीकार नहीं करता और साथ ही संकल्प की स्वतन्त्रता को भी अस्वीकार करता है। उसके अनुसार मनुष्य अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं है। सुप्रसिद्ध नीतिज्ञ काण्ट के अनुसार नैतिकता के तीन स्वतःसिद्ध प्रमाण हैं : संकल्प की स्वतन्त्रता, भगवान् की सत्ता, आत्मा की अमरता। नीत्से इन तीनों का विरोधी है। उसके सिद्धान्तानुसार संकल्प की स्वतन्त्रता मिथ्या कल्पना है, कर्म सोद्देश्य नहीं होते और भगवान् मर चुका है। उसकी सत्ता में विश्वास करना अतिमानव का उपहास करना है। आत्मा की अमरता धर्म की कायरता की सूचक है। प्रात्मा मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाती है । नरक कुछ नहीं है। जितनी भी नैतिक और धार्मिक धारणाएँ, और संस्थाएं हैं उनका मूल्य तभी तक है जब तक कि वे अतिमानव का संवर्धन कर सकती हैं । जीवन की आवश्यकताएँ यह सिद्ध करती हैं कि प्रचलित नैतिकता के रूप को बदलना पड़ेगा। सहानुभूति, प्रेम, सेवा, त्याग, बान्धव-स्नेह तथा परार्थ भावनाएँ आज के युग में असंगत हैं। मानव-विकास की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए द्वैतात्मक नैतिक संहिता नीत्से के नैतिक दर्शन के प्रमुख आधारस्तम्भों में से एक है। यही समस्त मान्यताओं का पुनर्मूल्यीकरण फ्रेडरिक नीत्से | ३१६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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