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________________ दृढ़ विश्वास था कि संस्कृति का एकमात्र ध्येय मानव-स्वभाव का उन्नयन करना है। हम अधिकतम संख्या के हित के कारण महान् कवि, कलाकार, महान् सन्त तथा विशिष्ट व्यक्तित्व के स्त्री-पुरुषों का तिरस्कार नहीं कर सकते । अधिकतम संख्या के सुख में विश्वास करना संस्कृति का पतन करना है । सुखभोग का अधिकारी केवल अतिमानव है। ___ सोद्देश्य नैतिकता : संकल्प स्वतन्त्र नहीं है-नीत्से के अनुसार संकल्प स्वातन्त्र्य की धारणा भ्रान्तिपूर्ण है । यह कल्पनामात्र है। व्यक्ति के कर्म आत्मनिर्णीत नहीं होते, वह अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं है। जिस प्रेरणा से वह कर्म करने के लिए प्रेरित होता है वह वातावरण और परिस्थितिजन्य होती है। विश्व में हमें भौतिक और देह-व्यापार-सम्बन्धी कार्य-कारण का अनवरत प्रवाह मिलता है। हमारी प्रेरणा एवं संकल्प इस शृंखला से मुक्त नहीं है। हमारे कर्म भी इसी शृंखला के अंग हैं । वे अपने पूर्वकारणों से ही अनिवार्यत: निर्धारित होते हैं । उनके स्वरूप को वातावरण और आनुवंशिकता निर्धारित करती है.। अत: कर्म स्वतन्त्र संकल्प के परिणाम नहीं हैं और न वे सोद्देश्य ही होते हैं। कार्य-कारण की शृंखला का अंग होने के कारण कर्म, उद्देश्य एवं प्रेरणाएँ अपने-आपमें न तो सत् हैं और न असत् हैं; न नैतिक हैं, न अनैतिक ही। _ नैतिक सापेक्षता-नीत्से सापेक्षतावादी हैं । वह कहता है कि नैतिक प्रत्यय सापेक्ष होते हैं, शाश्वत नहीं । उसके अनुसार नैतिक प्रत्यय एवं सत असत् की धारणाएँ देश, काल, परिस्थितियों पर निर्भर होती हैं। वे समयानुसार परिवर्तित होती रहती हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि विभिन्न जातियों, देशों और कालों में भिन्न-भिन्न नैतिक नियम मिलते हैं। जो एक विशिष्ट काल में शुभ है वह दूसरे काल में अशुभ है; जो एक जाति के लिए उचित है वह दूसरी जाति के लिए अनुचित है। कालक्रम में अपनी उपयोगिता एवं अनुपयोगिता के अनुसार सत् असत् और असत् सत् बनता जाता है। नैतिक विभक्तियाँ शाश्वत नहीं हैं । वे जैव, भौगोलिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों पर निर्भर हैं। जहाँ तक प्रकृति का प्रश्न है उसमें किसी प्रकार का नैतिक उद्देश्य दष्टिगोचर नहीं होता । वह न सत् है और न असत; वह निनैतिक है। प्राकृतिक घटनाएँ नैतिक मान्यताओं से परे हैं। इसका महत्त्व मनुष्य के सम्बन्ध में है। वह घटनाओं की नैतिक व्याख्या करता है। नीत्से के कथनानुसार विश्व प्रकृति नैतिकता से शून्य है। नैतिकता केवल मानव-जगत की उपज है। सत फ्रेडरिक नीत्से | ३१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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