SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वारा अपने 'शक्ति की आकांक्षा' के सिद्धान्त का निर्माण तथा उसका स्पष्टीकरण किया। उसने सत्य के सापेक्ष रूप को समझाने का प्रयास किया; सद्गुणों के ऐतिहासिक मूल्य को समझाया; नैतिकता के प्राकृतिक इतिहास एवं नैतिकता के उद्गम का परीक्षण किया और दास नैतिकता तथा प्रभनों की नैतिकता की संहितानों के द्वैत की स्थापना की। यह कहना उचित होगा कि उसने 'शक्ति की आकांक्षा' के विरोधी सभी सिद्धान्तों की ध्वंसात्मक आलोचना की और अतिमानवों की विशेषताओं और महानताओं का मुक्त कण्ठ से गान किया । उसने अतिमानवों के प्रादुर्भाव के लिए समस्त मान्यताओं के पुनर्मूल्यीकरण को महत्त्व दिया है । अब हम नीत्से के सिद्धान्त के आलोचनात्मक पक्ष को समझने का प्रयास करेंगे। ईसाई धर्म का खण्डन—'प्रभुत्वप्राप्ति की महदाकांक्षा' में जीवन के मूल स्रोत को ढंढनेवाले नीत्से ने ईसाई धर्म अथवा किसी भी अन्य धर्म को महत्ता नहीं दी। उसने ईसाई धर्म का खण्डन किया और कहा कि उस धर्म ने शोभन, सुसंस्कृत, निर्भीक गुणों तथा ग्रहन्ता का विरोध किया है । अपनी पुस्तक, एंटी क्राइस्ट ' में उसने यह समझाने की चेष्टा की कि ईसू को सत्य का ज्ञान नहीं था। नीत्से के अनुसार शक्ति की भावना की वृद्धि ही सत्य का मानदण्ड है। इस कसौटी पर कसकर वह ईसाई धर्म, जो कि शक्तिहीनता के गुणगान करता है, की बुरी तरह पालोचना करता है। उसका कहना है कि ईसाई धर्म ने जीवन के निर्माण और विकास में सहायक शक्तियों को महत्त्व नहीं दिया है। अत: यदि मनुष्य अपनी रक्षा करना चाहता है तो उसे अपनी जाति में शुभ गुणों की वृद्धि और उन्नति करनी चाहिए। ईसू को रक्षक मानकर उनका आश्रय लेना भूल है, क्योंकि उन्होंने सदगुणों को नष्ट करने का भरपूर प्रयत्न किया है। उन्होंने सदाचार के नियमों द्वारा कायरों को प्राश्रय तथा उन्हें जीवित रहने का अधिकार दिया है। प्रभुत्व की इच्छा-शक्ति के प्रचारक के लिए यह असह्य था कि ईसाई धर्म में माने जानेवाले गुणों को लोग स्वीकार करें। नीत्से यह कहता है कि विनम्रता, सहिष्णुता, समानता तथा दान, दया आदि कायरों के गुण हैं । ईसाई धर्म के एकता और विश्वप्रेम आदि के सिद्धान्त पशुताभरे १. Thus Spake Zarathustra और Beyond Good & Evil को भी देखिए । वैसे उसने सर्वत्र आलोचना की है। फ्रेडरिक नीत्से | ३११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy