SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजय होती है। नीत्से ने इस सिद्धान्त को नैतिक रूप देकर यह कहा कि सामर्थ्यवान को ही जीवित रहना चाहिए। इस प्रकार नीत्से का मल नैतिक नियम डारविन के जैव विकासवाद से लिया गया है । नीत्से का विश्वास था कि समर्थ को जीवित रहना चाहिए। विकासवाद को स्वीकार करते हुए वह कहता है कि विकास का ध्येय साधारण मानव को उत्पन्न करना नहीं है बल्कि प्रतिमानवीय व्यक्तित्व को। इस विश्वास के आधार पर उसने अतिमानवीय व्यक्तित्व एवं अतिमानव को महत्ता दी। अतिमानव एवं समर्थ व्यक्ति ही विकास का ध्येय है अतएव उसे ही जीवित रहना चाहिए। नीत्से के अनुसार विकास (प्रगति का क्रम) केवल बौद्धिक स्तर पर ही नहीं होता, वह मानसिक स्तर पर भी होता है। 'समर्थ' से अभिप्राय केवल शक्तिशाली स्थूल व्यक्तित्व से ही नहीं, बल्कि बौद्धिक व्यक्तित्व से भी है। मनुष्य में जीवन का प्रसार उच्च मनुष्यत्व के प्रादुर्भाव के लिए होता है, अथवा यह कहना चाहिए कि शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक गुणों के विकास के लिए होता है। विकास का ध्येय अतिमानव है जो स्वस्थ शरीर, तेजस्वी, व्यक्तित्ववान, नैतिक और आध्यात्मिक गुणसम्पन्न व्यक्ति है। इन गुणों से नीत्से का तात्पर्य 'शक्ति की याकांक्षा' (Will to power) वाले व्यक्तित्व से है। अथवा वह व्यक्तित्व जो सदैव अपनी इच्छाशक्ति तथा अपने दढ़ संकल्प द्वारा अपने सजातियों पर शासन करता है; जो शक्तिशाली, प्रभावशाली, साहसिक तथा निर्भीक है; जिसमें स्वाभिमान, धष्टता, उच्छखलता, प्रगल्भता आदि गण भलीभाँति विकसित हैं। उपर्युक्त गुणोंवाला व्यक्ति ही सुसंस्कृत, शिष्ट, दृढ़ संकल्पवाला स्वस्थ शरीर का मानव है, जो अतिमानव है। डारविन के प्राकृतिक चयन और योग्यतम की ही विजय के सिद्धान्त को नीत्से ने अतिमानवों के प्रादुर्भाव के रूप में समझाया। विकास की अन्तिम स्थिति नैतिक, आध्यात्मिक गुणसम्पन्न बलिष्ठ मानवों की है, क्योंकि प्रकृति में सर्वत्र निष्ठर, निर्भीक, शक्तिशाली तथा शासन करनेवाले प्राणी ही विजयी और जीवित रहते हैं। असमर्थ पर समर्थ की विजय ही जीवन का नियम है। उसकी अवहेलना करना पाप है। उस प्राकृतिक विजय के प्राधार पर ही नैतिक नियमों का निर्माण सम्भव है : समर्थ (शक्ति की महत्त्वाकांक्षावाले व्यक्तित्व) को ही जीवित रहना चाहिए। यूनानी सभ्यता का प्रभाव : समस्त मान्यतामों का पूनम ल्यीकरण- नीत्से का अतिमानव का सिद्धान्त प्राचीन यूनानियों की 'व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास' फ्रेडरिक नीत्से | ३०९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy