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________________ थे। उन्होंने इतिहास की अर्थशास्त्रीय व्याख्या करने में हीगल की द्वन्द्वात्मक प्रणाली को स्वीकार किया एवं साम्यवाद को व्यवस्थित स्वरूप तथा दार्शनिक आधार दिया। हीगल की द्वन्द्वात्मक प्रणाली पर आधारित साम्यवाद दार्शनिक दृष्टि से भौतिकवाद है । उसका स्वरूप भौतिक है । उसके अनुसार विचारों का उत्थान-पतन भौतिक घटनाओं पर निर्भर है । भौतिक घटनाएँ एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ नैतिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि विभिन्न विचारों और सिद्धान्तों पर प्रकाश डाल सकती हैं। मार्क्स और हीगल में भेद- मार्क्स हीगल के विकास के द्वन्द्वात्मक क्रम को मानता है और स्वीकार करता है कि कोई भी विशिष्ट प्रवृत्ति दो विरोधी प्रवृत्तियों का समन्वय है । मार्क्स और हीगल दोनों ही विकास की पद्धति को वाद, प्रतिवाद और समन्वय के रूप में स्वीकार करते हैं। इस समानता के पश्चात् दोनों विचारकों में महान असमानता दीखती है । एक भौतिकवादी और तथ्यात्मक है और दूसरा दार्शनिक और विचारक है। हीगल के अनुसार तथ्यात्मक और विचारात्मक जगत में युगपत् परिवर्तन होते हैं । किन्तु दार्शनिक होने के कारण वह साथ ही यह भी कहता है कि द्वन्द्वात्मक प्रणाली को प्रगति देनेवाले विचार ही हैं। विचारों के विकास के साथ विभिन्न भौतिक घटनाओं (आर्थिक, सामाजिक आदि) में परिवर्तन होते हैं । मार्क्स हीगल के विपरीत कहता है कि दृश्यमान भौतिक जगत मानसिक जगत पर अवलम्बित नहीं है । पदार्थ जगत मानसिक जगत से पहले है और इसलिए विकास के क्रम में वस्तुजगत की घटनाएँ मानसिक घटनाओं में परिवर्तन लाती हैं । अथवा द्वन्द्वात्मक प्रगति को प्रेरणा देनेवाले 'विचार' नहीं हैं किन्तु जीवन की वास्तविक व्यावहारिक आवश्यकताएँ हैं । विचार इतिहास के एक आवश्यक अंग हैं किन्तु वे ऐतिहासिक घटनाओं के जन्मदाता नहीं। वे अपने-आपमें महत्त्वपूर्ण नहीं । उनका महत्त्व इसलिए है कि वे उन परिस्थितियों के प्रतिफल स्वरूप हैं जो उन्हें जीवित रखती हैं। बाह्य जगत की घटनाएँ ही मनुष्य के विचारों की जम्मदाता हैं। विचारों का उत्थान-पतन उन्हीं पर निर्भर है।। ऐतिहासिक दृष्टान्त द्वारा स्पष्टीकरण-इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए मार्स ऐतिहासिक उदाहरण देता है। तथ्यात्मक विकास द्वन्द्वात्मक है । एक विशिष्ट प्रवृत्ति अपनी पूर्वप्रवृति के ह्रास के साथ बढ़ती है और अपने उत्थान 1. Thesis, Antithesis and Synthesis. कार्ल मार्क्स | २६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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