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________________ जितनी विभिन्नताएँ अथवा विशेषताएँ हैं उनकी सचाई एकता में है । विश्व गतिशील और क्रियात्मक है । उसकी गति के रूप ( विकास - प्रक्रिया ) को समभाने के लिए ही हीगल अपनी द्वन्द्वात्मक प्रणाली का प्रतिपादन करता है । सत्ता के दो रूप हैं : तथ्यात्मक और विचारात्मक । सत्ता के विकास के साथ ही उसके दोनों रूपों का भी निरन्तर विकास हो रहा है । इस विकास का क्या रूप है ? यह कैसे होता है ? हीगल के दर्शन के अनुसार सत्ता एवं वास्तविकता एक क्रमानुगत प्रणाली है जिसका कि कहीं अन्त नहीं हो सकता है । इस क्रमानुगत प्रणाली में विचारों और तथ्यों का विकास साथ-साथ होता है । दार्शनिक होने के कारण वे विचारों को महत्ता देते हैं और कहते हैं कि द्वन्द्वात्मक प्रणाली की प्रेरणाशक्ति स्वयं विचार हैं। अपनी द्वन्द्वात्मक प्रणाली वे यह कहकर समझाते हैं कि विचार की एक विशिष्ट प्रवृत्ति अपने विकास में अपने विरोधी विचार को जन्म देती है । यह विरोधी विचार पूर्वविचार को त्यागता नहीं है किन्तु पूर्वविचार का अपने भीतर समावेश कर लेता है । अतः उत्तरविचार अधिक सत्य है क्योंकि वह पूर्वविचार को सम्मिलित करता है और पूर्वविचार की एकांगी और प्रांशिक उन्नति को पूर्णता देता है । दो विरोधी विचारों के द्वन्द्व के फलस्वरूप पूर्वविचार का उत्तर विचार में प्रवेश कर लेने के क्रम को ही हीगल द्वन्द्वात्मक प्रणाली कहते हैं । वे इस प्रणाली को आवश्यक मानते हैं और प्रत्येक घटना तथा विचार में इसे देखते हैं | विचार, प्रकृति और मानव जगत ये सभी द्वन्द्वात्मक प्रणाली से संचालित होते हैं । द्वन्द्वात्मक प्रणाली द्वारा हीगल ने बतलाया कि विकास का निश्चित लक्ष्य परम प्रत्यय (Absolute Idea ) को प्राप्त करना है। विकास पूर्णतया नियमित र नियन्त्रित है । वह बोधगम्य है | दर्शन का इतिहास विचारों के द्वन्द्वात्मक या पारस्परिक विरोधमूलक इतिहास का निदर्शन है । द्वन्द्वात्मक रीति से प्रत्येक घटना, वस्तु और विचार निषेध एवं विरोध के नियम से संचालित होकर आत्म-संगतिपूर्ण धारणा एवं परम प्रत्यय की ओर बढ़ रहे हैं । परम प्रत्यय ही इनका पर्यवसान है । इतिहास यह स्पष्ट कर देता है कि विकास चलता रहता है और द्वन्द्वात्मक रीति से मानव सदैव अधिक सत्य विचारों की ओर अग्रसर होता रहता है । द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद - कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एन्जिल्स' समाजवादी 1. Friedrich Engels. २६४ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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