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अन्तर्दृष्टि, अनहोनी प्राकृतिक घटनाएँ आदि प्रतिकूल परिणामों को उत्पन्न करके शुभ प्रेरणा के कर्म को वस्तुगत रूप से अशुभ सिद्ध कर देती हैं । क्या हम कह सकते हैं कि सब कर्म वैयक्तिक रूप से उचित हैं ? इसमें भिन्न मत नहीं हो सकता कि कोई भी व्यक्ति जान-बूझकर अपना हित नहीं करता है । चोर चोरी को उचित समझकर ही करता है । वह अविवेक के कारण उचित और हितकर स्वार्थ को एक ही मान लेता है और वास्तविक कल्याण को भूल जाता है | आत्मगत औचित्यवाले कर्मों को समझने के लिए सम्यक् ज्ञान और विवेक अनिवार्य है । विवेक उसी कार्य को व्यक्तिगत रूप से अच्छा एवं आत्मगत औचित्यवाला कहता है जिसमें कि व्यक्ति का वास्तविक शुभ है । ऐसा कर्म वह कर्म है जिसमें कि सभी की भलाई निहित है । वास्तविक कल्याणवाले कर्म नैतिक शुभत्व से युक्त हैं । शुभ व्यक्ति वह है जो सक्रिय रूप से साध्यगत या साधनगत वास्तविक मूल्यों की अभिवृद्धि के लिए वहाँ तक प्रयास करता है जहाँ तक कि उसमें क्षमता है । समस्त वास्तविक मूल्यों की अभिवृद्धि अपने भीतर नैतिक शुभत्व की वृद्धि का समावेश करती है । अतः नैतिक शुभत्व को साध्य और साधन दोनों रूपों में समझा जा सकता है।
शुभ - अशुभ से परे – नैतिक शुभ तात्विक दृष्टिकोण की ओर ले जाता है । नैतिकता शुभ-अशुभ और पाप-पुण्य के भेद द्वारा यह बतलाती है कि हमें घटनाओं के प्रवाह में आँख मूंदकर नहीं बह जाना चाहिए वरन् अपने विवेक को जाग्रत कर उन कर्मों का वरण करना चाहिए जो शुभत्व की स्थापना में सहायक हैं । नैतिकता विश्व की घटनाओं और कार्यों के सापेक्ष मूल्य को निर्धारित करती है । परिस्थिति, देश, काल और आवश्यकता के अनुसार कर्म को समझना चाहिए । सभ्यता, संस्कृति और ज्ञान का विकास बतलाता है कि नैतिक निर्णय परिवर्तनशील है । व्यक्ति को रूढ़ि-रीति एवं निश्चित नियमों से ऊपर उठकर उन कर्मों को समझने का प्रयास करना चाहिए जिन्हें कि वह परिस्थिति विशेष में वैयक्तिक और सामाजिक कल्याण के लिए सर्वश्रेष्ठ समझता है । ऐसा विवेक नैतिक कल्याण की ओर ले जाता है और नैतिक कल्याण उस तात्विक सत्य की ओर जो हमें बतलाता है कि पाप और पुण्य का भेद अपूर्ण ज्ञान का सूचक है । शाश्वत दृष्टिकोण से विश्व की घटनाएँ परम शुभ को अभिव्यक्त करती हैं । फिर भी जहाँ तक अपूर्ण और सीमित ज्ञान का प्रश्न है, शुभ और अशुभ हैं। अपनी दुर्बलतानों से ऊपर उठने के लिए नैतिक शुभ की धारणा अनिवार्य है । नैतिक शुभ को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ।
मूल्यवाद / २५६
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