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________________ साक्षात्कार के सम्बन्ध में ही कर सकते हैं। अत: वही प्राभ्यन्तरिक रूप से मूल्यवान् है जो व्यक्तित्व की पूर्णता के लिए अनिवार्य है; यह, वास्तव में, धनात्मक और ऋणात्मक मूल्यों के भेद की ओर हमें ले जाता है। धनात्मक मूल्य की वस्तु शुभ है। वह आत्म-पूर्णता में सहायक है; उसके विपरीत, वह वस्तु, जो पूर्णता अथवा साक्षात्कार के मार्ग में विरोध उत्पन्न करती है, ऋणात्मक मूल्य की वस्तु है, तथा अशुभ है । ___ काण्ट के अनुसार शुभ संकल्प ही एक मात्र प्राभ्यन्तरिक मल्य एवं तात्त्विक मूल्य है । सुखवादियों ने सुख को, बुद्धिवादियों ने बुद्धि को तथा गांधीजी ने सत्य को साध्य मूल्य से युक्त माना है। इसी भाँति अन्य विचारक विवेक, सौन्दर्य, स्वतन्त्रता, प्रेम आदि को परम मूल्यवान मानते हैं। साध्य मूल्य की विभिन्न धारणाएँ यह बतलाती हैं कि वह वस्तु, जो अपने-आपमें पूर्ण है एवं अन्य वस्तुओं के लिए साधन मात्र नहीं है, परम मूल्यवान् अथवा परम शुभ है। मूल्यवादियों के अनुसार प्रात्म-साक्षात्कार या आत्म-पूर्णता ही परम शुभ है। वह तात्त्विक मूल्ययुक्त पूर्णता है। प्राभ्यन्तरिक शुभ वैयक्तिक भी है-परम मूल्यवान् वस्तु वह नहीं है जो क्षणिक विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को तप्त करती है किन्तु जिसे प्रत्येक विवेकी व्यक्ति मूल्यवान् मानता है । साध्य मूल्य की वस्तु ही परम शुभ है । यह शुभ वस्तुगत होते हुए भी आत्मगत है । परम शुभ सार्वभौम है यद्यपि यह व्यक्ति द्वारा प्राप्त होता है। परम शुभ की प्राप्ति सुख देती है यद्यपि सुख परम शुभ नहीं है। शुभ एवं मूल्य का सुखद होना इस बात का सूचक है कि इसका अनुभव व्यक्ति करते हैं । अत: नैतिक मूल्य वैयक्तिक और सार्वभौम दोनों ही है। मूल्य वह है जिसे व्यक्ति महत्त्व देता है और उसके अनुरूप कर्म करता है। प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करता है कि मूल्य की धारणा उसकी अपनी सम्पत्ति है । वह केवल यही नहीं कहता कि मैं इस वस्तु को मूल्य देता हूँ बल्कि उस मूल्य के अनुरूप कर्म करने के लिए सदैव तत्पर भी रहता है। धन को परम मूल्य देनेवाला व्यक्ति धन उपार्जन के लिए निन्दनीय कर्मों को सहर्ष स्वीकार कर लेता है और यश का आकांक्षी अपना सर्वस्व त्याग करके यश प्राप्त करना चाहता है। इससे प्रकट होता है कि अपने व्यापार में मुल्य आत्मगत या भाव-प्रधान है और वह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न है । मूल्य क्रियाशील भी है । यह मनुष्य के अन्तरतम में जगती हुई वह शक्ति है जो उसे एक विशिष्ट प्रकार से कर्म करने के लिए प्रेरित करती है और उसके जीवन को अपने अनुरूप शासित कर उसे एक विशिष्ट दिशा मूल्यवाद / २८३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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