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________________ १९ मूल्यवाद प्रवेश-नीतिशास्त्र आचरण का आदर्श देता है और आचरण स्वेच्छाकृत कर्मों का सूचक है । नैतिक निर्णय कर्मों के शुभ और अशुभ स्वरूप के बारे में बतलाते हैं। सामान्य वार्तालाप में शुभ-अशुभ का प्रयोग कर्मों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं और घटनाओं के लिए भी किया जाता है। इनका ऐसा अनिश्चित प्रयोग उस विज्ञान की अपेक्षा रखता है जो कि इनके विभिन्न अर्थों पर प्रकाश डाले तथा उन अर्थों की पारस्परिक भिन्नता और विशेषता को समझाये। ऐसा सिद्धान्त मूल्यों अथवा मान्यताओं का विज्ञान (Axiology or the science of values) कहलाता है। मूल्यों का विज्ञान सामान्यतः शुभ-अशुभ वस्तुओं का विवेचन करता है : ललित कला, सुन्दर नृत्य, शुभ आचरण, रहस्यानुभूति आदि के बारे में निर्णय देता है । वे नैतिक सिद्धान्त, जो हेतुवादी हैं और जिनके अनुसार वे कर्म शुभ हैं जो मूल्यवान् परिणामों को देते हैं, मूल्यवाद के सिद्धान्त (value theories) हैं। मान्यताओं के विज्ञान का प्रयोग जब नीतिशास्त्र के क्षेत्र में किया जाता है तो उसका सम्बन्ध उन वस्तुओं या दृश्यों से नहीं होता जो सुन्दर हैं, बल्कि उसके द्वारा कर्मों के परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यवाद का सिद्धान्त वह सिद्धान्त है जो कर्म के औचित्य या शुभत्व को इस आधार पर आँकता है कि उसका परिणाम एक विशिष्ट अर्थ में शुभ है। प्रश्न यह है, किन मूल्यवाले परिणामों को नैतिक रूप से शुभ कह सकते हैं और मूल्य के क्या अर्थ हैं ? शुभ और मूल्य-मूल्यवादियों ने शुभ को मूल्य के रूप में समझाया और साध्यगत मूल्य तथा साधनगत मूल्य के भेद द्वारा सिद्ध किया कि साध्यगत मल्यों एवं प्राभ्यन्तरिक मूल्यों की प्राप्ति ही परम शुभ है जो कि सत्य, सौन्दर्य और २७८ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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