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________________ १८ पूर्णतावाद' आत्मा का स्वरूप-नैतिक सिद्धान्तों का अध्ययन बतलाता है कि नीतिज्ञों ने उस आदर्श को समझना चाहा जो आत्म-सन्तोष, आत्म-साक्षात्कार अथवा आत्म-पूर्णता प्रदान करता है। प्रत्येक नीतिज्ञ ने जानना चाहा कि मनुष्य के लिए उच्चतम शुभ अथवा परम ध्येय क्या है ? उसने उस ध्येय एवं आदर्श की अपने सिद्धान्त के अनुरूप व्याख्या की। मानवोचित ध्येय के स्वरूप को समझने के पूर्व एक बार पुनः यह समझ लेना अनिवार्य है कि मनुष्य एवं उस आत्मा का क्या स्वरूप है जो कि अपनी पूर्णता अथवा सन्तोष के लिए प्रयास करती है ? हम किस आत्मा को सन्तुष्ट करना चाहते हैं; आत्मा का सारतत्त्व बुद्धि है या भावना अथवा बुद्धि और भावना दोनों ही। आत्मा की परिभाषा देने में सुखवाद और बुद्धिवाद ने दो स्पष्ट विरोधी आदर्शों को हमारे सम्मुख रखा । किन्तु दोनों में निहित सत्यांशों को मानते हुए भी उनकी जाज्वल्यमान दुर्बलताओं के कारण उन्हें पूर्णत: स्वीकार नहीं किया जा सकता। बुद्धि-भावना का योग-पूर्णतावादियों ने उस दृष्टिकोण को अंगीकार किया जो मध्यवर्ती है। उन्होंने मनुष्य के मूर्त व्यक्तित्व के आधार पर बुद्धि और भावना के समुचित मूल्य को निर्धारित किया। मनुष्य का स्वभाव भावना और बुद्धिमय है । साथ ही यह भी सत्य और सर्वमान्य है कि वही जीवन सफल तथा स्तुत्य है जो बुद्धि से संचालित है । नैतिक उन्नति और विकास के लिए 1. Perfectionism. 2. Self-realization. २६६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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