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________________ 1 भी शैफ्ट्सबरी और हचिसन का सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण सत्य से अछूता नहीं है प्रत्येक निर्णय में एक सहज या अपरोक्ष तत्त्व रहता है, इसमें सन्देह नहीं है । यदि हम सामान्य सिद्धान्तों के आधार पर भी विशिष्ट ध्येयों का मूल्यांकन करें तो भी हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि हम उपर्युक्त सत्य का निराकरण नहीं कर सकते हैं । सर्वोच्च सार्वभौम सिद्धान्त का ज्ञान सहज रूप से ही होता है. क्योंकि सर्वोच्च होने के कारण उसका सरलीकरण नहीं किया जा सकता । किन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि ऐसे अनिवार्य सहज निर्णय अधिकतर अविश्वसनीय हैं जो कि व्यावहारिक जीवन की उन स्थितियों के लिए आवश्यक हैं जहाँ सतर्क चिन्तन असम्भव है । शैफ्ट्सबरी और हचिसन ने यह समझाया कि शुभ केवल उस अमूर्त सार्वभौम सत्य को नहीं कहते जो विशिष्ट वैयक्तिक अनुभवों द्वारा दुर्गम है। उन्होंने कहा कि विशिष्ट शुभ का प्रत्यक्ष बोध या भोग, चाहे वह सुख हो या मानसिक क्रिया या कोई अन्य विषय, एक सहज क्रिया है । शुभ का ऐसा स्वरूप यह बतलाता है कि उसका सम्बन्ध व्यक्तिगत चेतना से है । शुभ अपने में ही सन्तोष देता है और उसका बोध इस रूप में मिल सकता है कि उससे एक या अनेक व्यक्तियों को तत्काल सुख प्राप्त होता है । बटलर श्रान्तरिक और बाह्य निरीक्षण अन्तर्बोध के सर्वोच्च अधिकार की स्थापना करता है—बटलर' अट्ठारहवीं शताब्दी के अंग्रेज़ सहजज्ञानवादियों में व्यावहारिक दृष्टि से सर्वाधिक गम्भीर विचारक है । उसने क्लार्क की अनुभवनिरपेक्ष बौद्धिक प्रणाली की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हुए स्वयं आगमनात्मक प्रणाली को अपनाया । उसने नीतिशास्त्र को मानव स्वभाव के अनुभूत तत्त्वों पर आधारित किया । उसके अनुसार निरीक्षण द्वारा हम यह बतला सकते हैं कि मानव जीवन का उद्देश्य क्या है । इस उद्देश्य के लिए कर्म करने में ही मनुष्य को वास्तविक श्रानन्द प्राप्त होता है । अन्तर्मुखी निरीक्षण बतलाता है कि मनुष्य का स्वभाव उस प्राणी की भाँति नहीं है जो सामान्य रूप से कुछ नियमों के अनुसार कर्म करता है किन्तु वह उसकी भाँति है जिसे कि कुछ आदर्श सिद्धान्तों के अनुसार कर्म करना चाहिए; चाहे, वास्तव में, वह उन आदर्शों के अनुरूप कर्म 1. Joseph Butler, 1692-1752. Jain Education International सहजज्ञानवाद ( परिशेष ) / २५.३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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