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पर समझ सकते हैं। भगवान् ने ही प्राकृतिक नियम दिये हैं। भगवान् ने ही कुछ कर्मों को पर्याप्तता दी है । नैतिक और प्राकृतिक नियम शाश्वत और नित्य हैं । नैतिक बोध द्वारा कर्मों की पर्याप्तता और अपर्याप्तता को समझकर हमें पर्याप्त कर्मों को स्वीकार करना चाहिए। किन्तु क्लार्क भी क्या है' और 'क्या होना चाहिए' के भेद को भूल जाता है। यही कारण है कि प्रयास करने पर भी वह प्रात्मप्रेम और सद्गुण के बीच संगति स्थापित करने में असमर्थ रहा । व्यावहारिक बुद्धि के सहजज्ञानों के विरोध को गणित के सहजज्ञान द्वारा समझाना यथार्थ और आदर्श विज्ञान के भेद को भूलना है । क्लार्क के अनुयायी, वलेस्टन ने नीतिशास्त्र और तर्कशास्त्र में पूर्ण ऐक्य मानकर नीतिशास्त्र को तर्कशास्त्र पर आधारित करके अपने सिद्धान्त को अत्यधिक आलोचना का विषय बना दिया।
नैतिक बोधवाद सामान्य परिचय-नैतिक बोधवादियों एवं सौन्दर्यवादियों ने अपने नैतिक बोध (moral sense) के आधार पर समझाया कि सुन्दर-असुन्दर का भेद विषयक जो नन्दतिक बोध होता है उसी की भाँति शुभ और अशुभ सहजबोध होता है। जिस भाँति सौन्दर्य का बोध वस्तुओं की सुन्दरता और असुन्दरता से प्रभावित होता है। उसी भाँति नैतिक बोध भी कर्मों के नैतिक या अनैतिक गुण से प्रभावित होता है । अथवा नैतिक बोध नन्दतिक बोध की भाँति है। हम ऐसे सहजबोध की व्याख्या कर सकते हैं। हमारी बुद्धि इन बोधों को समझ सकती है । सौन्दर्यवादियों का यह भी कहना है कि नैतिक बोध मनुष्य को उसकी सामाजिक प्रकृति की देन है। जो समाज के लिए लाभदायक है वह स्वभावतः शुभ है और जो हानिप्रद है उसे हम सहज ही अशुभ कह देते हैं। सहजज्ञानवाद की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन बतलाता है कि सौन्दर्यवादियों का यह दृष्टिकोण एक जलाशय के समान है जिससे अनेक नैतिक धाराएँ प्रवाहित होती हैं। ____ हॉब्स की आलोचना-हॉब्स ने कहा कि व्यक्ति केवल अपनी ही इच्छाओं की तृप्ति करता है। इससे उसका अभिप्राय यह था कि व्यक्ति केवल अपने सुख और जीवन के संरक्षण की चिन्ता करता है। सौन्दर्यवाद का प्रतिनिधित्व करनेवाले विचारकों, हचिसन और शैफ्टसबरी ने मुख्य रूप से हॉस के इस कथन की आलोचना की। उन्होंने बुद्धिवादियों के साथ हॉब्स के विरुद्ध एक
सहजज्ञानवाद (परिशेष) /२५१
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