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________________ आवश्यक है कि संकल्प विषयवस्तु से तटस्थता की विशिष्ट स्थिति में हो किन्तु फिर भी वह नैतिक विश्व से असम्बद्ध नहीं है । नैतिक सिद्धान्त प्रत्येक बौद्धिक व्यक्ति के लिए समान है । वह उस समाज से सम्बन्ध रखता है जहाँ कि प्रत्येक प्राणी समान रूप से स्वशासित है। प्राचरण-विधियाँ - यदि नैतिकता का सिद्धान्त रूपात्मक है और उसका कोई विशिष्ट विषय नहीं है तो आचरण के नियमों का प्रतिपादन कैसे किया जा सकता है ? क्या वह व्यावहारिक नियम दे सकता है ? काण्ट का कहना है कि कर्तव्य के सब नियम 'कर्तव्य कर्तव्य के लिए करना चाहिए' को अभिव्यक्त करते हैं । कर्तव्य के सिद्धान्त अथवा परम आदेश के प्राधार पर व्यावहारिक नैतिक नियमों को प्राप्त किया जा सकता है । बौद्धिक अन्तर्दष्टि अथवा नैतिक अन्तर्ज्ञानवाले व्यक्ति के लिए ये नियम उतने ही स्पष्ट, सुगम और सरल हैं जितना यह कथन कि दो और दो का जोड़ चार होता है। बुद्धि के आदेश परम और सार्वभौम हैं । वे प्रत्येक बौद्धिक प्राणी पर अपने को आरोपित करते हैं। वे प्रत्यक्ष और स्पष्ट हैं। बुद्धि बतलाती है कि कर्मों में आत्म-संगति (Self-consistency) होनी चाहिए। आत्म-संगति का नियम अथवा बाधनियम (Law of contradiction) कहता है कि एक ही कर्म उचित और अनुचित दोनों ही नहीं हो सकता। यदि कर्म एक परिस्थिति में उचित है तो वह सभी परिस्थितियों में उचित रहेगा। यदि कर्ता की प्रेरणा बौद्धिक है तो किसी कर्म को किसी एक परिस्थिति में वह तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह यह भी न चाहे कि वह कर्म सार्वभौम रूप ग्रहण कर सके। जिन सिद्धान्तों पर बौद्धिक प्राणी कर्म करते हैं वे ऐसे होने चाहिए जिन्हें वे अपने जीवन-भर अपना सकें और साथ ही दूसरों पर भी आरोपित कर सकें। उदाहरणार्थ, "तुम दूसरों के लिए वैसा ही करो जैसा कि तुम दूसरों से अपने प्रति किये जाने की आशा करते हो।" अतः काण्ट ने कहा कि "उस सिद्धान्त के अनुसार कर्म करो जिसके बारे में तुम यह भी इच्छा कर सको कि वह एक सार्वभौम नियम बन जाये।" काण्ट का विश्वास था कि यह नीतिवाक्य विशिष्ट कर्तव्यों को निर्धारित करने के लिए पर्याप्त मानदण्ड है। इस नीतिवाक्य के व्यावहारिक रूप को समझाने के लिए वह शपथ तोड़ने का उदाहरण देता है। वह कहता है कि यदि इसे सार्वभौम रूप दे दिया जाये--प्रत्येक शपथ तोड़ने लगे तो शपथ लेने का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा । मनुष्य के कर्मों में संगति और समानता होनी चाहिए । प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तित्व (Personality) २२४ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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