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________________ का अध्ययन करता है। यह चरम ध्येय को समझने का प्रयास करता है और उसके अनुरूप ही प्राचार को शुभ और अशुभ कहता है। इसके अनुसार वही कर्म श्रेयस्कर हैं जो चरम ध्येय अथवा निःश्रेयस की प्राप्ति में सहायक होते हैं । यह सामाजिक प्रथानों, धार्मिक आस्थानों, राजनीतिक नियमों और व्यक्तिगत एवं सामूहिक अभ्यासों का विवेकसम्मत विश्लेषण करता है और यह बताने का प्रयास करता है कि व्यक्ति अपने दैनन्दिन के जीवन में इन आस्थाओं, विचारों और विश्वासों को अपनाकर अपने ध्येय को कहाँ तक प्राप्त कर सका है। उसके कर्म ध्येय की प्राप्ति के लिए कहाँ तक सफल साधन कहे जा सकते हैं। साधन की सफलता और असफलता को समझाने के लिए यह शुभ-अशुभ, उचित-अनुचित शब्दों का प्रयोग करता है । कर्तव्य, अधिकार, बाध्यता, सद्गुण, उत्तरदायित्व' आदि भी इन्हीं के अनुगामी शब्द हैं। मूलगत नैतिक प्रत्यय : उचित-अनुचित,शुभ-अशुभ का स्पष्टीकरण-नीतिशास्त्र जीवन के परमलक्ष्य की खोज करता है । इस लक्ष्य की प्राप्ति में सार्थक कर्मों को वह शुभ या उचित कहता है और जो कर्म उपयोगी नहीं होते उन्हें अनुचित या अशुभ कहता है। अतः ये शब्द अधिकतर विशेषणों के रूप में प्रयुक्त होते हैं । वैसे राइट (Right) अर्थात् उचित शब्द लैटिन शब्द रैक्टस (Rectus) से बना है जिसका अर्थ है सीधा अथवा नियम के अनुसार । किसी के चरित्र को उचित कहने का तात्पर्य यह होता है कि वह विशिष्ट नैतिक नियमों के अनुसार कर्म करता है। किन्तु नियम का सम्बन्ध ध्येय से होता है। वे लक्ष्य को सम्मुख रखकर बनाये जाते हैं अतः नियम, लक्ष्य या ध्येय की पूर्ति के लिए साधन मात्र हैं। यदि जीवन का ध्येय सूखी रहना है तो सूखी रहने के लिए आवश्यक नियमों के अनुसार कर्म करना उचित कहलायेगा और इसके विपरीत अनुचित । कोई भी विशिष्ट कर्म या तो उचित ही होता है और या अनूचित । उचित और शुभ (good) आपस में विरोधी लगते हैं। किन्तु इनमें मौलिक सम्बन्ध होता है। यह सम्बन्ध शुभ के अर्थ को समझने पर स्पष्ट होगा। 'गुड' (good) का सम्बन्ध जर्मन शब्द 'गुट' (gut) से है जिसका अर्थ शुभ होता है। शुभ से अभिप्राय है जो परमशुभ के लिए उपयोगी है, जो उसकी प्राप्ति के लिए साधन है। अधिकतर शुभ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में होता है—साधन और साध्य ; शुभ और परमशुभ (ultimate good, १. देखिए-भाग १, अध्याय ६ । .२० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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