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________________ अलेग्जेण्डर सामाजिक सन्तुलन–अलेग्जेण्डर' वस्तुतः लस्ली स्टीफेन के सिद्धान्त को मानता है। वह अपने सिद्धान्त को सामाजिक जीव-रचना या सामाजिक विधान की धारणा द्वारा समझाता है। उसके अनुसार शुभ और कुछ नहीं, वह केवल सन्तुलित समष्टि में संयोजन है। उसके अनुसार आचरण के औचित्य-अनौचित्य को एक विशिष्ट मानदण्ड द्वारा निर्धारित किया जाता है । इस मानदण्ड का ही नाम नैतिक आदर्श है। नैतिक आदर्श आचरण का सन्तुलन विधान है। यह विरोधी प्रवृत्तियों पर आधारित है और उनके बीच सन्तुलन स्थापित करता है। अत: परम शुभ आचरण का पूर्ण रूप से संयोजित शुभ एवं सामाजिक जीव-रचना का सन्तुलन है। नैतिकता के क्षेत्र में प्राकृतिक चयन-अलेग्जेण्डर ने नैतिक मान्यतामों और पश-जीवन के विकास और उन्नति में प्राकृतिक चयन का सादृश्य पाया। उसने कहा कि नैतिक जीवन में प्राकृतिक चयन का क्रम मिलता है । लेस्ली स्टीफेन के साथ उसने स्वीकार किया कि प्राकृतिक चयन के कारण विकास के क्रम में प्राचरण का वह प्रकार सुरक्षित रह जाता है जो अधिकतम योग्य और पूर्ण रूप से सन्तुलित है। प्राकृतिक चयन वह पद्धतिक्रम है जिसके कारण विभिन्न जीवयोनियाँ प्रभुत्व के लिए संघर्ष करती हैं और जो विजयी होती हैं वे सापेक्षतः स्थायी हो जाती हैं । पशु-जीवन और नैतिक जीवन में प्रमुख भेद यह है कि नैतिकता का क्षेत्र मानस का क्षेत्र है, न कि पशुता का । पशु-जीवन में सबल और सशक्त का संघर्ष दुर्बल और निःशक्त के साथ होता है और नैतिक जीवन में आदर्शों या जीवन-प्रणालियों का संघर्ष मिलता है । प्राकृतिक चयन में वे प्रणालियाँ जीवित रहती हैं जो सामाजिक कल्याण की वाहक हैं । यदि कोई समर्थ बुद्धिमान् व्यक्ति समाज के लिए कल्याणकारी विचारों का प्रतिपादन करता है—दास प्रथा, निर्दयता, अविनय, असमानता आदि के विरुद्ध आवाज उठाता है तो अन्य व्यक्ति उसकी. कटु आलोचना करते हैं। फिर भी ऐसे व्यक्ति के विचार तथा जीवन-प्रणाली अपनी उच्चता के कारण अन्त में विजयी होती है। पालोचना नैतिकता का प्राकृतिक विज्ञान-विकासवादी सुखवादियों ने नैतिक 1. Samuel Alexander. . . विकासवादी सुखवाद | १९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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