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________________ नीतिशास्त्र को डार्विन की देन-उन्नीसवीं शताब्दी में लमार्क' तथा डाविन ने जीवयोनियों की उत्पत्ति को विकास द्वारा समझाया । डार्विन जड़वादी विचारक था, उसकी जीवशास्त्र में रुचि थी। जैव सिद्धान्तों को समझने के लिए उसने खोज की और उन प्राणिशास्त्रीय अनुसन्धानों को दो पुस्तकों के रूप में संकलित किया । उसने उन पुस्तकों में जैव प्रश्नों की समीक्षात्मक विवेचना की और जानना चाहा कि जीवयोनियों में जो परिवर्तन मिलता है उसे कैसे समझा जा सकता है। उनके जन्म और वृद्धि को कौन नियम नियन्त्रित करते हैं। इन प्रश्नों के समाधान के रूप में ही उसने विकासवाद को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया। डार्विन ने विकास का प्रयोग बढ़ने या वृद्धि के अर्थ में किया। यह वृद्धि नवीन सृष्टि नहीं है, अकारण कुछ भी उत्पन्न नहीं होता । वह उत्पत्ति का ही अनिवार्य परिणाम है। सरल प्राकारों की जटिल आकारों में परिणति ही विकास है । उदाहरणार्थ, अंकुर की वृक्ष के रूप में परिणति विकास है। डार्विन ने यह समझाया कि जीवयोनियों में परिवर्तन होते रहते हैं । वे स्थिर और अपरिवर्तनशील नहीं हैं। बहुत-सारी जीवयोनियां, जो आज भिन्न लगती हैं, वे एक ही मूल से उत्पन्न हुई हैं। उनके पूर्वज एक ही थे । आज जीवन्त जीवयोनियों के तथा वृक्षों, पशु-पक्षियों, मनुष्यों के रूप में जो आकारप्रकार मिलते हैं वे प्रारम्भ के कम विकसित आकारों के जीवों का ही जटिल रूप हैं। क्रम विकास इन्हें एकरूपता (homogeneous) से अनेकरूपता (heterogeneous) की ओर ले जाता है। पहले न तो इतने अधिक वर्ग थे और न उनका रूप ही इतना जटिल था। वर्षों का जैव इतिहास बताता है कि मनुष्य का जनक मनुष्य नहीं है, वह कमशः एक प्रकार के बन्दर से विकसित हमा है। उसकी एक जीवयोनि से दूसरी जीवयोनि में क्रमपरिणति हई है। इतिहास यह भी बतलाता है कि विकास एक विश्वव्यापी नियम है। प्रश्न यह है कि विकास का नियम क्या है ? सरल आकार जटिल प्राकारों में कैसे परि'णत होते हैं ? जीवयोनियों में इस परिवर्तन को कैसे समझाया जा सकता है ? डार्विन ने अपने विकासवाद में भौतिक परिस्थितियों और प्राकृतिक नियमों को महत्त्व दिया। वह जीवशास्त्री था। उसका उत्तर जड़वादी उत्तर था। उसने 1. Lamark. 2. Charles Darwin, 1809-1882. 3. The Descent of Man (1861) The origin of species (1859.) १७८ । नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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