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________________ आरूढ़ होने के समान असम्भव है। सुख और प्रानन्द-सुखवादियों ने नैतिक ध्येय को सुख (pleasure) और आनन्द (happiness) शब्दों के द्वारा समझाया है। इन्हें वे पर्यायवाची मानते हैं । अरस्तू ने इस पर अच्छी तरह प्रकाश डाला है कि सुख और आनन्द एक नहीं हैं। उसने कहा कि इसमें मतभेद नहीं कि ध्येय आनन्द है; किन्तु आनन्द की परिभाषा में अवश्य मतभेद है। कुछ लोगों ने आनन्द की व्याख्या सुख के अर्थ में की है जो अनुचित है। सुख वह भावना है जो विशिष्ट इच्छाओं, सहजप्रवृत्तियों तथा आवेगों की सन्तुष्टि के साथ रहता है । "आनन्द वह भावना है जो उस बोध के साथ आता है जो कि क्षणिक इन्द्रिय-सुखों की पूर्ति के अतिरिक्त उनको सन्तुष्ट न कर सकने की असफलता अथवा अस्वीकृति के दुःख के साथ होते हुए भी साधारणतः आत्मा की समग्रता की पूर्ति करता है ।'' सब इच्छाओं की सामंजस्यपूर्ण प्राप्ति ही आनन्द है। वह प्रात्म-प्राप्ति (selfrealisation) की स्थिति है। इसे ही ग्रीन आत्म-सन्तोष (self.satisfaction) की स्थिति कहता है। उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अधिकतम परिमाण के सुख के प्रति उदासीन होकर असह्य कष्ट उठाता है । आनन्द अपनेआपमें कल्याण (welfare) का सूचक है। कल्याण भावजीवी का कल्याण नहीं, सम्पूर्ण आत्मा का कल्याण है। सुखवादियों के अनुसार सुख भावनामों और इच्छायों की तृप्ति का सूचक है। इस प्रर्थ में वह क्षणिक और सापेक्ष है। उसका सम्बन्ध विशिष्ट कर्म से है। प्रानन्द समग्र सक्रिय आत्मा (total active self) का कल्याण है। वह नित्य और सार्वभौम है। उसका ध्येय केवल भावनात्मक सुख नहीं, किन्तु बौद्धिक सुख भी है। वह सम्पूर्ण आत्मा एवं उस कर्मरत संकल्प-शक्ति का कल्याण है जो बुद्धि और भावना का योग है। __ जीवन का ध्येय आत्मसन्तोष या आत्मकल्याण है। वह सुखद अवश्य है, किन्तु सुख नहीं है। सिजविक ने अन्य सखवादियों की भांति सखद और सख को एक ही ले लिया। वे मिल की उस भूल से अपने को मुक्त नहीं कर पाये जिसके कारण वह कहता है कि 'शुभ सुखद है इसलिए वह सुख है।' सिजविक अथवा अन्य सुखवादियों के विरुद्ध प्रश्न यह उठता है कि क्या सुख ही एकमात्र वांछनीय ध्येय है ? क्या वस्तुओं का मूल्य इस पर निर्भर है कि वे सुख के उत्पादन में कितनी सहायक हैं ? ' मनुष्य का वास्तविक स्वरूप क्या है ? उस १. म्योरहेड, पृ० १.६. सुखवाद (परिशेष) | १७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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