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प्रयास द्वारा प्राप्त हो सकता है और उसी नियम को नैतिक कह सकते हैं जो इस दृष्टि (व्यावहारिक) से उपयोगी हो।
पालोचनात्मक पक्ष : सहजज्ञानवाद और सुखवाद का समन्वय–सिजविक अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन मिल, काण्ट और बटलरं के सिद्धान्तों की विशेषताओं और दुर्बलताओं को दिखाते हुए करता है। उसकी नैतिक आदर्श की व्याख्या सुखवाद (उपयोगितावाद) और सहजज्ञानवाद में समन्वय की अपेक्षा रखती है। सिजविक उस सिद्धान्त को सहजज्ञानवाद कहता है जिसके अनुसार वह आचरण शुभ है जो कर्तव्य के उन निदेशों के अनुरूप है जिनकी निरपेक्ष अनिवार्यता (unconditionally binding) सहजज्ञान द्वारा सिद्ध होती है। इस सिद्धान्त के आधार पर परमशुभ की धारणा उचित आचरण को निर्धारित करने के लिए अनिवार्य रूप से महत्त्व नहीं रखती। उसकी महत्ता इस पर निर्भर है कि उचित आचरण ही मनुष्य का परमशुभ है। वह चरित्र की पूर्णता है। सिजविक यह मानता है कि सहजज्ञानवाद कर्तव्यरत आचरण (वह कर्म जो कर्तव्य के निदेशों के अनुरूप हो) को महत्त्व देता है, न कि परमशुभ को। वह इस तथ्य को व्यापक रूप देता है कि परमशुभ की पूर्णधारणा अथवा मानव-कल्याण, कर्तव्य और सुख दोनों की भावना का समावेश करता है । कर्म करने के लिए जब व्यक्ति प्रेरित होता है तो केवल उसके सम्मुख नैतिक विचार ही नहीं रहता, किन्तु उसकी इच्छाएँ और प्रवृत्तियाँ भी उसे कर्मरत करती हैं। सिजविक मानव-जीवन के व्यापक अध्ययन की दुहाई देकर स्वार्थ
और परमार्थ, सूखवाद और सहजज्ञानवाद में सामंजस्य स्थापित करता है। स्थूल दृष्टि से लगता है कि ये दोनों दो भिन्न दृष्टिकोण हैं, पर वास्तव में परमशुभ की धारणा इन दोनों के बिना अपूर्ण है। "मुझे सहजज्ञानवाद और उपयोगितावाद में कोई विरोध नहीं दीखा मुझे ऐसा लगा कि मिल और बैंथम के उपयोगितावाद को एक प्राधार की आवश्यकता है और यह आधार उसे केवल मूलगत सहजज्ञानवाद से प्राप्त हो सकता है। दूसरी ओर जब मैंने सामान्य बुद्धि-सूलभ नैतिकता (morality of common sense) का यथाशक्ति पूर्ण निरीक्षण किया तो मुझे उन नियमों के अतिरिक्त अन्य कोई स्पष्ट
और स्वतःसिद्ध नियम नहीं मिले जिनकी कि उपयोगितावाद के साथ पूर्ण संगति हो ।' सिजविक यह समझाने का प्रयास करता है कि उपयोगितावाद
1. Sidgwick : The Methods of Ethics Preface, pp. XX-XXI.
१६६ / नीतिशास्त्र
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