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________________ १२ सुखवाद (परिशेष) सहजज्ञानवादी उपयोगितावाद सिजविक-हेनरी सिजविक' ने सहजज्ञानवादी उपयोगितावाद' का प्रतिपादन किया। उन्होंने सहजविश्वास के आधार पर कुछ भी स्वीकार नहीं किया। प्रत्येक सत्य को स्वीकार करने के पूर्व अपनी गूढ़ और गहन विश्लेषण-शक्ति द्वारा उसके सब पक्षों को समझने का प्रयास किया। यही कारण है कि मिल से प्रभावित होने पर भी उन्होंने उसे पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया वरन् मिल के उपयोगितावाद का सहजज्ञानवाद के साथ समन्वय किया। नैतिक सिद्धान्त का लक्ष्य-सिजविक के अनुसार नैतिक सिद्धान्त उस बौद्धिक प्रणाली को अपनाता है जिसके द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि प्रत्येक मनुष्य को क्या करना चाहिए अथवा वह कौन-सा शुभ है जिसे मनुष्य स्वेच्छाकृत कर्मों द्वारा प्राप्त कर सकता है। नैतिक आदर्श काल्पनिक नहीं, वास्तविक जीवन पर प्राधारित है। नैतिक 'चाहिए' का स्वरूप 'क्या है' पर निर्भर है। उसके लिए जीवन की वास्तविक घटनाओं का अध्ययन आवश्यक है। इसी से ज्ञात हो सकता है कि मनुष्य की सम्भावनाएँ और सीमाएँ क्या हैं; वह किस ध्येय की प्राप्ति करना चाहता है। उसकी प्राप्ति के लिए किस साधन का उपयोग किया जा सकता है; कौन-सा प्राचरण शुभ है, इत्यादि । आचरण के औचित्य और अनौचित्य के बारे में जो नैतिक नियम और बौद्धिक निदेश (precept) मिलते हैं उनकी सत्यता की खोज और जांच करनी चाहिए। संक्षेप में नैतिक आदर्श की स्थापना के लिए मानव-जीवन एवं मानव-स्वभाव का सर्वांगीण ज्ञान अनिवार्य है। उसी ध्येय को 'आदर्श' मान सकते हैं जो 1. Henry Sidgwick, 1838-1900. 2. Intuitional utilitarianism. सुखवाद (परिशेष) | १६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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