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________________ है कि सुख से बैंथम का अभिप्राय वैयक्तिक सुख से नहीं बल्कि सामाजिक सुख से है। परिणाम से बैंथम का वास्तव में अभिप्राय कर्म के विशिष्ट फल से नहीं है। किन्तु सम्पूर्ण परिस्थिति, उद्देश्य से है । उदाहरणार्थ, यदि कोई मनुष्य अपने मित्र को दारुण दुःख से मुक्त करने के लिए अत्यधिक प्रयास करता है, किन्तु परिस्थितिवश उसे सफलता नहीं मिलती तो बैंथम के अनुसार उसका कर्म शुभ कहलायेगा। सुख की प्रेरणा से प्रेरित होकर व्यक्ति कर्म करता है, अपने मित्र को दुःख से बचाने का प्रयास करता है। उसका उद्देश्य शुभ है, मानव-सुख • की वृद्धि है । परिणाम बुरा होने पर भी कर्म स्तुत्य है। परिमाण : सुखवादी गणना-बैंथम के अनुसार सुख जीवन का ध्येय है । सब सुख समान हैं, शुभ हैं। उनमें कोई जातिभेद नहीं है। किन्तु फिर भी कुछ सुख अधिक वांछनीय हैं और कुछ कम । यह जानना आवश्यक है कि अधिक वांछनीय सुख को कैसे समझा जा सकता है । अन्य सुखवादियों की भांति बैंथम ने भी परिमाण को महत्त्व दिया । उसका कहना था कि जहाँ तक परिमाण का प्रश्न है सुखों में भेद है। उसके अनुपात में ही एक सुख को दूसरे सुख से अधिक वांछनीय माना जाना चाहिए । जहाँ तक गुण (quality) का प्रश्न है वह निरर्थक है । उसी गुण का मूल्य है जो परिमाण में परिणत हो सकता है। यदि दो सुख आपस में परिमाण में समान हैं तो दोनों ही समान रूप से शुभ हैं। समान परिमाण होने पर तुच्छ खेल के और कविता करने के सूख को समान रूप से शुभ कह सकते हैं । बैंथम के ही शब्द हैं-'Quantity of pleasure being equal, push-pin is as good as poetry.'' परिमाण महत्त्वपूर्ण है या नहीं ? इसको कसे मापा जा सकता है ? कानन में रुचि होने के कारण बैंथम ने सुख को नापने के लिए एक वस्तुगत और सार्वभौम मापदण्ड की खोज की। वह दृढ़ और ठोस मापदण्ड चाहता था। ऐसा मापदण्ड चाहता था जो व्यक्तिगत विचार और भावनाओं पर निर्भर न हो । उसने यहाँ पर गणित से प्रेरणा ली। गणित में जो गणना का सिद्धान्त (mathematical calculation) मिलता है उससे वह अत्यधिक प्रभावित हुआ । उसका कहना था कि यह सिद्धान्त निर्विवादिता, स्पष्टता और सुनिश्चितता पर आधारित है। यदि इसी प्रकार की गणना के सिद्धान्त को नीतिशास्त्र के क्षेत्रों में स्वीकार कर लिया जाय तो कर्मों पर निश्चित निर्णय दिया जा सकता. है । सुख को उसी भाँति मापा जा सकता है जिस भाँति कमरे को उसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई द्वारा नापा जाता है । सुख के वे कौन-से आयाम (dimen १४६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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