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________________ चैयक्तिक सुख खो नहीं जाता। वह समान और निष्पक्ष रूप से उसमें सुरक्षित रहता है। इस प्रकार बेंथम परम स्वार्थवाद के साथ समानता या निष्पक्षता के सिद्धान्त (Principle of equity or impartiality) को स्वीकार करता है। . उपयोगितावाद-किन्तु फिर भी प्रश्न उठता है कि यदि व्यक्ति स्वभावतः स्वार्थी है तो वह जनहितसाधन कैसे कर सकता है ? बैंथम उपयोगितावाद का प्रतिपादन करता है। उसके अनुसार नैतिकता का मूल आधार उपयोगितावाद का सिद्धान्त (Principle of utility) है । "उपयोगितावाद के सिद्धान्त से अभिप्राय उस सिद्धान्त से है जो कि प्रत्येक कर्म को उस प्रवृत्ति के अनुसार स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करता है जो कि उन लोगों के सुख-दुःख का ह्रास अथवा विकास करती प्रतीत होती है जिनका स्वार्थ उससे सम्बद्ध है।" बैंथम के उपयोगितावाद के सिद्धान्त के अनुसार वही कर्म शुभ है जो सर्वसामान्य के सुख के लिए उपयोगी है । 'अधिकतम संख्या के लिए अधिकतम सुख' अथवा परसुखवाद को समझाने के लिए वह सुखवाद को उपयोगिता के सिद्धान्त के साथ सम्बद्ध कर देता है । उपयोगिता ही नैतिक मापदण्ड को निर्धारित करती, है। वह डेविड ह्य म और ऐडम स्मिथ की आलोचना करता है। ये लोग उपयोगिता के तत्त्व को नैतिकता का मूल आधार नहीं मानते; सजातीय भावना (fellow feeling) या सहानुभूति (sympathy) को नैतिक मान्यताओं का मूलतत्त्व मानते हैं, यद्यपि दोनों में भिन्नता स्पष्ट है। ह्य म अपने सहानुभूति के सिद्धान्त का प्राकृतिक स्पष्टीकरण करता है और ऐडम स्मिथ सहजज्ञानवादी होने के कारण अन्तर्बोध के द्वारा सहानुभूति को समझाता है। बैंथम के अनुसार. सहानुभति को नैतिकता का प्राधार माननेवाले सिद्धान्त बहिर्मुलक नैतिक मापदण्ड नहीं दे सकते । सहानुभूति अन्ध-प्रवृत्ति है । यह वैयक्तिक भावना पर निर्भर है। ह्य म तथा स्मिथ का मापदण्ड प्रात्मगत है। इसी भांति बैंथम वैराग्यवाद, नैतिकबोध, कर्तव्य, ईश्वरेच्छा प्रादि को नैतिकता का आधार माननेवाले सिद्धान्तों के विरुद्ध कहता है कि वे कर्मों की मल प्रेरणा को नहीं समझा पाये। कर्मों की वास्तविक और परमप्रेरक उपयोगिता है। बैंथम उपयोगिता के सिद्धान्त को महत्त्व देता है और कहता है कि वही कर्म करना चाहिए जो उपयोगिता के सिद्धान्त के अनुरूप हो । यही नैतिक कर्तव्य के अर्थ नैतिक प्रादेश द्वारा सामूहिक सुख की प्राप्ति-बैंथम सुखवादी मनोविज्ञान __ सुखवाद (परिशेष) | १४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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