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(Cynic) और सिरेनंक ( Cyrenaic) ये चारों यह मानते हैं कि मनुष्य के लिए शुभ का ज्ञान आवश्यक है । किन्तु शुभ के स्वरूप के बारे में इनमें पारस्परिक विरोध मिलता है । इसका मूल कारण यह है किं सुकरात के सिद्धान्त में विच्छिन्न रूप से अनेक विचार-धाराएं मिलती हैं । उसके अनुयायियों ने उसको अपना गुरु मानते हुए उसके सिद्धान्त में अपने ही विशिष्ट सिद्धान्तों का प्रतिदेखा । सुकरात के मुख्य शिष्यों में प्लेटो और अरस्तू ( Aristotle ) हैं । अन्य सिद्धान्तों के प्रतिपादक भी उसके शिष्य एवं अनुयायी थे ।
भिन्न शाखाएँ - मेगेरियन ने अपने नीतिशास्त्र को रहस्यवादी बना दिया । वे व्यावहारिक दर्शन के नाम पर तत्त्वदर्शन में प्रवेश कर गये । अतः नैतिक दृष्टि से वे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं कर सके । प्लेटो के लिए "परम शुभ ज्ञान और सुख का सन्तुलित योग है किन्तु सिनिक और सिरेनेक विचारधारा में परम विरोध मिलता है | सिरेनक के अनुसार जीवन का ध्येय इन्द्रियसुख और सिनिक के अनुसार इन्द्रिय-विजय ।
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सामान्य निरीक्षण / १२१
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