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वह उसके विपरीत पाचरण नहीं कर सकता। व्यक्तियों का स्वार्थ सदैव सामान्य शुभ के अनुरूप होता है, क्योंकि शुभ सार्वभौम और अपरिवर्तनशील है। सद्गुण और मानव-कल्याण व्यक्तियों की बदलती हुई. रुचि से भिन्न अपरिवर्तनशील नियमों के आश्रित है। शुभ का ज्ञान व्यक्तियों के आचरण और नियमों में एकरूपता ला देता है। शुभ वह है जो सार्वभौम रूप से सबके लिए उचित एवं लाभप्रद है। शभ वह है जो कि परम उपयोगी (Supremely useful) है। शुभ और उपयोगी एक ही है। इनका ऐक्य सिद्ध करता है कि सद्गुण की अन्तिम परिणति प्रानन्द (Happiness) है । बौद्धिक अन्तर्दृष्टि द्वारा शुभ एवं सद्गुण को समझा जा सकता है । इसके स्वरूप को समझ लेने से विवेकी व्यक्ति को बाह्य ऐहिक आकर्षणों के प्रति घृणा एवं अरुचि हो जाती है। वह आनन्द को पवित्र सुख मानने लगता है, जिसका अभिप्राय है सामान्य सुखभोग का त्याग । प्रानन्द अपने-आपमें साध्य है । उसकी प्राप्ति में सहायक अन्य शुभ साधन एवं सापेक्ष शुभ हैं । परमशुभ प्रानन्द अथवा सद्गुण ही हैं।
(ग) उत्तर-सुकरात युग सुकरात का प्रभाव-सुकरात के अनुसार चरित्र की पूर्णता को प्राप्त करना ही मनुष्य का ध्येय है। उसने अपने आचरण, पाख्यानों, व्यक्तिगत वादविवादों द्वारा नैतिक-जीवन की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। सुकरात ने किसी विशिष्ट सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया और न उसने नीतिशास्त्र पर कोई निबन्ध ही लिखा । उसने सदैव अपने को जिज्ञासु माना । उसके आचरण और उपदेश के कारण मीतिशास्त्र ने युनान में अपने लिए प्रमुख स्थान प्राप्त कर लिया । सुकरात की प्रेरणा के कारण ही लोगों का ध्यान बाह्य जगत से हटकर आचरण पर गया। उन्होंने नैतिक प्रश्नों को समझना चाहा। उसकी मृत्यु के पश्चात् कई सिद्धान्तों का प्रादुर्भाव हुमा जिन्होंने धीरे-धीरे स्पष्ट रूप धारण किया। - सुकरात पन्थ-सुकरात से प्रभावित होकर चिन्तकों ने यह जानना चाहा कि परम शुभ का क्या रूप है । सुकरात के साथ उन्होंने यह स्वीकार किया कि उचित जीवन के बारे में व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है तथा नैतिक विज्ञान सम्भव है। किन्तु प्रश्न यह है कि मानव कल्याण क्या है ? उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? सुकरात के पन्थ को माननेवाले चार प्रमुख सिद्धान्त मिलते हैं : मेगेरियन (Megarian), प्लेटोनिक (Platonic), सिनिक
१२० / नीतिशास्त्र
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