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________________ उपर्युक्त तीन सिद्धान्तों के अतिरिक्त अन्य मत भी मिलते हैं । उन मत को मिश्रित सिद्धान्तों के रूप में स्वीकार किया जा सकता है और उनको उन्हीं सिद्धातों के प्राधार पर समझाया जा सकता है । प्रमुख सिद्धान्त तीन ही हैं । (ख) सुकरात सोफिस्ट्स की श्रालोचना : शुभ वस्तुगत है- सुकरात ( Socrates ) ' ने सोफिस्ट्स' की चुनौती का उत्तर देने का प्रयास किया । सोफिस्ट्स ने शुभ के वैयक्तिक पक्ष को महत्त्व दिया था । वैयक्तिक शुभ को सामाजिक शुभ से वियुक्त एक स्वतन्त्र अस्तित्व दे डाला था । इससे उनके सिद्धान्त का विकास परमस्वार्थवाद की ओर हुआ । सोफिस्ट्स का व्यक्तिवाद इस तथ्य को प्रकाश में लाता है कि उन व्यक्तियों के अतिरिक्त, जो कि समाज का अनिवार्य निर्माणात्मक अंग हैं, सामाजिक शुभ का कोई अर्थ नहीं है । सोफिस्ट्स के इस कथन को स्वीकार करते हुए भी ध्वनि निकलती है कि वैयक्तिक शुभ और सामाजिक शुभ एक ही हैं । किन्तु सोफिस्ट्स अपने परमस्वार्थवाद की धुन में यह भूल जाते हैं कि व्यक्तिगत शुभ सामाजिक भी है । वे शुभ के केवल व्यक्तिगति पक्ष को ही महत्त्व देते हैं । प्रत्येक का सम्बन्ध उसी तक सीमित रखते हैं । उनके इस सिद्धान्त में वैयक्तिक शुभ की सामाजिक शुभ से संगति नहीं मिलती है। सुकरात ने सोफिस्ट्स समुदाय के विश्वविख्यात उपदेशक प्रोटेगोरस की उक्ति - मनुष्य ही सब वस्तुनों का मापदण्ड है - में जो सत्य है उसे स्वीकार किया और इस बात का समर्थन किया कि जिस शुभ की खोज हम करते हैं उसका सम्बन्ध मानव कल्याण ( Human well-being) से है और वह व्यक्तियों के ही द्वारा प्राप्त हो सकता है । प्रथवा शुभ का सम्बन्ध व्यक्तियों से है। किन्तु इस कारण हम इसे आत्मगत नहीं कह सकते हैं । जब सोफिस्ट्स कहते हैं कि शुभ का सामाजिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है तब सुकरात उनके विरुद्ध यह घोषित करता है कि शुभ वस्तुगत है, वह वैयक्तिक और सापेक्ष नहीं है । सुकरात के अनुसार यह भ्रान्तिपूर्ण है कि व्यक्तियों द्वारा प्राप्त हो १. जम्म ४६६ ई० पू० - मृत्यु ३६६ ई० पू० । २. शिक्षकों का समुदाय जिसने एथिन्स के नागरिकों को योग्य नागरिक बनाने के लिए शिक्षित करने का बीड़ा उठाया । ११८ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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