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________________ धर्म का मूल विनय है और सत अपने शरीर, कुटुम्ब, धनादि का विचार (दोहा) - अब जो जोवरणहार नर, तेह नो. कहुं विचार | आप लखी अपने हिये, अपनो करहुं विचार ॥१५४॥ अर्थ —- अब मैं देखने वाले मनुष्य के विषय में विचार कहता हूं। अपने स्वर को देखकर अपने मन में अपने लिए फल का निश्चय करें - १५४ चैत्र सुदि एकम से सुदि श्रष्टमी में स्वर विचार (दोहा) - चैत्र सुदि एकम दिने, शशि सुर जो नवि होय । तो तेह ने तिहुं मास में, अति उद्वेग सुजोय ॥ १५५।। मधुमास सित बीज दिन, चले न जो स्वर चंद | गमन होय परदेश में, तिहां उपजे दुख दन्द ॥। १५६।। चैत्र मास सित तीज कुं, 'चन्द चले नहीं प्राय | तो ताके तन में सही, पित्त ज्वरादिक थाय ॥ १५७ ॥ मरण होय नव मास में, जो सुर जाने तास । मधुमास सित चौथ को जो नवि चंद्र प्रकास ॥ १५८॥ ノ निशापति स्वर चैत सुदि, पांचम को नवि होय । राजदण्ड होटा हुवे, या में संशय न कोय ॥। १५१ ।। चैत्र सुदि छठ के दिवस, चंद्र चले नहि जास । वरस दिवस भीतर सही, विरगसे बन्धव तास ।। १६० ।। चले न चंदा चैत सित, सप्तम दिन लवलेश । तस नर केरी गेहनी, जावे जम के देश ।। १६१ ।। तिथि अष्टमी चैत्र सुदि, चन्द बिना जो जोय । तो पीड़ा अति उपजे, भाग-जोग सुख होय || १६२ || तिथि अष्ट नो चंद्र बिना, दीनो फल दरसाय । होय शशि शुभ तत्त्व में, तो उल्टो मन भाय ॥ १६३॥ अर्थ – (१) यदि चैत्र सुदि एकम के दिन अपना चंद्र स्वर न चलता हो - तो जानना चाहिए कि तीन मास में मुझे बहुत चिन्ता और क्लेश उत्पन्न होगा - १५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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