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________________ - सम्यग्ज्ञान मानव जीवन का सार है। प्रातःकाल चंद्रस्वर में आगामी वर्ष के बीज रूप जल तत्त्व अथवा पुग्नी सारा चलते हों तो उस वर्ष देश-विदेशों में सब प्रकार के सुख की प्राप्ति हो अर्थात् पूर्व कहे (वर्ष फल जानने की प्रथम व दूसरी रीति) अनुसार श्रेष्ठ फल जानना चाहिए-१४६-१५० २. अग्नि, वायु, आकाश तत्त्व चन्द्र स्वर में (दोहा)-अपर तत्त्व निशिनाथ घर, बहे अधम फल जान । अर्थ-यदि उक्त दिनों में प्रातःकाल चन्द्र स्वर में अन्य अर्थात् अग्नि, वायु अथवा आकाश तत्त्वों में से कोई भी तत्त्व चलता हो तो पूर्व कहे अनुसार अनिष्ट फल समझना चाहिए-१५१ ३. पृथ्वी तत्त्व, जल तत्त्व सूर्य स्वर में उदक मही जो भानु घर, तो मध्यम चित्त आन ॥१५१॥ अर्थ-यदि उक्त दिनों में प्रातःकाल सूर्य स्वर में पृथ्वी तत्त्व अथवा जल तत्त्व चलता हो तो साधारण फल जानना चाहिए-१५१ ४. अग्नि-वायु और आकाश तत्त्व सूर्य स्वर में (दोहा)-एक अशुभ फुनि एक शुभ, तीनों में जो होय । . सिद्ध होय फल तेह न, मध्यम निहचे जोय ।।१५२।। अर्थ-यदि उक्त दिनों में प्रातःकाल सूर्य स्वर में शेष के तीनों (अग्नि, वायु अथवा आकाश) तत्त्वों में से कोई तत्त्व चलता हो तो पूर्व कहे अनुसार उनका अशुभ, मध्यम अथवा शुभ फल जान लेना चाहिए-१५२ . ५. वर्ष फल में विशेष जानने योग्य (दोहा)-सहु परीक्षा भाव में, मेष भाव बलवान । ता दिन तत्त्व निहारि के; फल हिरदे दृढ़ प्रान' ॥१५३॥ अर्थ-यह बात विशेष ध्यान में रखने योग्य है कि इन सब प्रकार के वर्ष फलों में मेष भाव (वैसाख मास का फल) बलवान है इसलिए उस दिन (वैसाख की सक्रांति को) तत्त्वों को जानकर उस दिन से वर्ष फल' को अपने हृदय में निश्चय पूर्वक धारण करना चाहिए-१५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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