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________________ अन्तः परिग्रही का बाह्य त्याग व्यर्थ है ।। ५. सूर्य लार में वायु तत्त्व (दोहा)-नृप विग्रह कछु ऊपजे, अल्प वृष्टि फुनि होय । - सूरज में इम अनिल को, चिदानन्द फल जोय ॥१४५।। अर्थ-यदि प्रातःकाल सूर्य स्वर में वायु तत्त्व हो तो राजा लोग परस्पर में लड़ेंगे, वर्षा कम होगी, इत्यादि-१४५ . ६-सुखमत स्वर (दोहा)-सुखमन सुर जो ता दिवस, प्रात समय जो होय । जोवनहार मरे सही, छत्र भंग फुनि जोय ।।१४६॥ अन्न कहुं थोड़ो ऊपजे, कहुंक थोड़ो नांहि । सुखमन सुर को इनि परे, फल जानो मन' मांहि ॥१४७।। अर्थ-यदि चैत्र सुदि (चांद्रमास) की प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल सुखमंन स्वर चलता हो तो जानना चाहिए कि इस वर्ष देखने वाले की अपनी मृत्यु होगी तथा छत्र भंग होगा। अन्न कहीं कम उत्पन्न होगा और कहीं पर थोड़ा भी पैदा नहीं होगा अर्थात् बिल्कुल उत्पन्न ही नहीं होगा । सुखमन' स्वर में वर्ष फल इस प्रकार समझना चाहिए--१४६-१४७ . वर्ष फल जानने की तीसरी रीति (दोहा)-दुविध रीत जोवरण तणी, कही बरस नी एम । तीजी आगल जाणजो, धरी हियडे अति प्रेम ॥१४८।। अर्थ-दो प्रकार से वर्ष फल देखने की रीति हम कह चुके हैं । अब तीसरे प्रकार की रीति आगे कहते हैं सो हृदय में प्रीति रखकर जानें-१४८ ___माघ सुदि सत्तमी तथा वैसाख सुदि तीज (दोहा) १. माघ मास सित सप्तमी, फुनि वैसाखी तीज । प्रात समय जो जोइये, बरस दिवस को बीज ॥१४६।। निशापति के गेह में, जल धरणी परवेश । यदि होय यह तिण समय, तो सुख देश विदेश ।।१५०।। १. पृथ्वी तथा जल तत्त्व चन्द्र स्वर में __अर्थ-यदि माघ सुदि ७ अथवा वैसाख सुदि ३ (अक्षय तृतीया) को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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