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मोह से ही मैं और मेरे का विकल्प होता है।
• विशेष इतना समझना चाहिए कि यदि ये दोनों। (पृथ्वी और जब वा प्रातःकाल सूर्य स्वर में चलते हों तो इसका इस वर्ष में मध्यम फल होगा । १४०
___३. अग्नि, पवन और आकाश तत्त्व (दोहा) तीन तत्त्व अवशेष जो, सुर में तास विचार ।
मध्यम निष्ट कह्यो तिको, पूर्वकथित इम धार ।।१४१।। राज-भंग परजा दुखी, जो नभ बहे सुर मांहि ।
पड़े काल बहु देश में, या में संशय नांहि ।।१४२।। अर्थ :-यदि इस दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर अथवा सूर्य स्वर में अग्नि वायु और आकाश इन तीन तत्त्वों में से कोई तत्त्व चलता हो तो उनका मध्यम तथा अनिष्ट फल वैसा ही समझना चाहिए जैसा कि हम पूर्व मेष सक्रांति में लिख आये हैं-१४१
विशेष रूप से इतना और समझें कि यदि स्वर में आकाश तत्त्व हो तो राज भंग हो, प्रजा दुःखी हो तथा देश में दुष्काल पड़े। यह बात निःसन्देह है-१४२
४. सूर्य स्वर में अग्नि तत्त्व (दोहा) स्वर सूरज में अग्नि को, होय प्रात: परवेश ।
रोग सोग थी जन बहु, पावे अधिक क्लेश ॥१४३।। काल पड़े महीतल विषे, राजा चित्त नवि चैन।
सूरज में पावक चलत, इम स्वरोदय बैन ॥१४४।। अर्थ-प्रातःकाल यदि सूर्य स्वर में अग्नि तत्त्व चलता हो तो जानना चाहिए कि जनता रोग और शोक से अत्यन्त पीड़ित होगी । क्लेश पाएगी देश . में दुष्काल पड़े, राजा को भी बहुत घबराहट हो अर्थात् यदि सूर्य स्वर में चैत्र सुदि प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल अग्नि तत्त्व चलता हो तो आगामी वर्ष उपर्युक्त कहे अनुसार बीतेगा-१४३-१४४ ३६. - वामायां विचरन्तौ दहन समीरौ तु मध्यमौ कथितौ।
- वरुणैन्द्रावितरस्यां तथा विधावेव निर्दिष्टौ ॥३७।। (ज्ञानार्णवे २९)
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