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________________ पर लोभ को चीन देने से संतोष की प्राप्ति होती यदि नाल और पीछे रह कर प्रश्न करे तथा उस समय अपना चन्द्र स्वर चलता हो तो कह देना चाहिए कि कार्य नहीं होगा-४० .. - यदि कोई बांई (डाबी) तरफ से प्रश्न करे तथा उस समय अपना सूर्य स्वर चलता हो तो चन्द्र स्वर के बिना उसे कह देना चाहिए कि तुम्हारा कार्य सिद्ध नहीं होगा-४१ .... इसी प्रकार यदि कोई अपने सामने अथवा ऊपर (ऊंचे) रह कर प्रश्न पूछे तथा उस समय अपना सूर्य स्वर चलता हो तो चंद्र स्वर के योग मिले बिना कार्य कदापि सिद्ध न होगा-४२ स्वर द्वारा कार्य के प्रक्षरों से प्रश्न फल निर्णय (दोहा)-लगन वार तिथि तत्त्व फुनि, राशि योग दिशि शोध । कारज के अक्षर गिने, होवे साचो बोध ॥४३॥ सम अक्षर. शशि कुं भलो, विषम भानु परधान । तिन की संख्या करन कं, कहुं एम अनुमान ॥ ४५ ॥ चार पाठ द्वादश युगल, षट दश चवदे जान । षोडष' थी शशि योग यह, महा शुद्ध पहिछान ॥ ४५ ॥ एक तीन शर सात नव, एकादश अरु तेर । तिथि संयम पचवीस फुनि, रवि जोग इम हेर ॥ ४६ ।। ___ अर्थ-लग्न, वार, तिथि, तत्त्व, राशि, योग तथा दिशा को देखे और कार्य के अक्षर गिन कर सब बातों का मिलान करे तब प्रश्न का उत्तर देने से निश्चय रूप से सत्य होता है-४३ .. .. --- चंद्र स्वर के सम अक्षर होते हैं तथा सूर्य स्वर के विषम अक्षर होते हैं इस को समझाने के लिए पद्य नं० ४५-४६ में गिनती देता हूं-४४ दो, चार, छः, आठ, दस, बारह, चौदह, सोलह आदि सम अर्थात् दो से विभाजित होने वाले अक्षर चन्द्र के हैं.-४५ । - एक, तीन, पांच, सात, नव, ग्यारह, तेरह, पंद्रह, सत्तरह, पच्चीस इत्यादि विषम अर्थात् दो से विभाजित न होने वाले अक्षर सूर्य के हैं-४६ . - स्वरोदय सिद्धि (दोहा)-लोक काज सह परिहरे, वरे सुनिश्चल ध्यान । .... श्रवन, मनन, चिन्तन करत, लहत स्वरोदय ज्ञान ॥ ४७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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